बोधगया. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने ऐसे महान आदर्शों को जन्म दिया जिन्होंने न सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया अपितु हिंदी कवियों की रचनाओं को भी ओजपूर्ण स्वर दिया. 1857 एक महत्वपूर्ण विभाजक रेखा है जो भारत के प्राचीन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को नये परिदृश्य में सामाजिक और राजनीतिक राष्ट्रवाद से जोड़ती है. भारत की सामूहिक चिंताओं को एक सूत्र में जोड़कर उसे राष्ट्रीय भूमिका सौंपती है. उक्त बातें एमयू हिंदी, मगही और पत्रकारिता विभाग द्वारा आयोजित स्वाधीनता आंदोलन और हिंदी कविता विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय से आये मुख्य अतिथि डॉ सिद्धार्थ शंकर राय ने कही. डॉ सिद्धार्थ ने भारतेंदु की विभिन्न कविताओं, मैथिलीशरण गुप्त की रचना भारत भारती, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कविता वीर तुम बढ़े चलो, प्रसाद की कविता हिमाद्रि तुंग शृंग और कामायनी, निराला की कविता वर दे वीणावादिनि एवं राम की शक्तिपूजा आदि के माध्यम से व्यक्त की गयी स्वाधीनता की चेतना को रेखांकित किया. हिंदी विभाग की पूर्व शिक्षिका डॉ जनकमणि कुमारी ने स्वाधीनता आंदोलन की चर्चा करते हुए हिंदी कविता में अनुस्यूत उसके विभिन्न स्वरों को रेखांकित किया. एसडी कॉलेज, परैया की शिक्षिका डॉ चंचला कुमारी की भी उपस्थिति रही. कार्यक्रम का आरंभ करते हुए हिंदी, मगही और पत्रकारिता के विभागाध्यक्ष प्रो ब्रजेश कुमार राय ने सभी अतिथियों का अंगवस्त्र एवं पुष्पगुच्छ प्रदान कर स्वागत किया व सभी अतिथियों का परिचय कराया. मंच संचालन डॉ परम प्रकाश राय ने किया. आभार ज्ञापन प्रो आनंद कुमार सिंह ने किया. इस अवसर पर हिंदी विभाग के शिक्षक प्रो सुनील कुमार, डॉ राकेश कुमार रंजन, डॉ अनुज कुमार तरुण, डॉ अम्बे कुमारी, मगही अध्येता डॉ किरण कुमारी, प्राचीन इतिहास विभाग से डॉ अनूप भारद्वाज मौजूद रहे.
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