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Gaya Ji: जानिए क्यों गया का नाम ‘गयाजी’ रखा गया है? क्या है इस शहर की धार्मिक महत्ता

Gaya Ji: गया अब 'गयाजी' के नाम से जाना जाएगा. नीतीश सरकार की कैबिनेट ने नाम बदलने को मंजूरी दी है. विष्णुपद और मां मंगलागौरी जैसे धार्मिक स्थलों की वजह से यह नामकरण धार्मिक सम्मान का प्रतीक है. पढ़ें आखिर क्यों गया का नाम गया जी किया गया है?

Gaya Ji: बिहार के ऐतिहासिक और धार्मिक नगर गया का नाम अब ‘गयाजी’ होगा. नीतीश कैबिनेट ने शुक्रवार को इस नाम परिवर्तन को आधिकारिक मंजूरी दे दी है. गया का नाम बदलने की मांग बीते 55 सालों से लगातार उठती रही है. यह शहर सनातन धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है, जहां भगवान विष्णु के चरणचिह्न स्थित हैं और पूरे विश्व से लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए यहां पिंडदान करने आते हैं. विष्णुपद मंदिर, मां मंगलागौरी शक्तिपीठ जैसे धार्मिक स्थलों की उपस्थिति इसे विशेष आध्यात्मिक दर्जा प्रदान करती है.

गया का अर्थ विष्णुपद से है

गयापाल और श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभूलाल विट्ठल के अनुसार, गया का अर्थ ही विष्णुपद से है, इसलिए इस धार्मिक स्थान को सम्मान देने के लिए इसे ‘गयाजी’ नाम देना जरूरी था. 1971 में गयापाल समाज ने पहली बार गया का नाम गयाजी करने की मांग सरकार से की थी और रेलवे स्टेशन का नाम ‘गयाजी जंक्शन’ करने का भी अनुरोध किया था. 2014 में बिहार सरकार ने भारत सरकार को नाम परिवर्तन को लेकर पत्र भी भेजा था. पंडा समाज के अलावा कई धार्मिक व सामाजिक संगठन भी लंबे समय से गया का नाम गयाजी करने की मांग कर रहे थे. जब भी कोई केंद्र या बिहार सरकार के मंत्री या वरीय अधिकारी विष्णुपद आए तो उनसे गया का नाम गयाजी करने की मांग प्रमुखता से रखी गई।

गया में स्थित है 51 शक्तिपीठों में से एक मां मंगलागौरी

गया में स्थित मां मंगलागौरी मंदिर 51 शक्तिपीठों में एक है, जो भस्मकूट पर्वत पर स्थित है. इसका निर्माण 1350 ईस्वी में माधव गिरि दंडी स्वामी ने करवाया था. सालभर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और नवरात्र के दौरान यहां आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है. पिंडदान करने वाले तीर्थयात्री भी यहां दर्शन को आते हैं.

भगवान विष्णु का चरणचिन्ह है विराजमान

इसी तरह फल्गु नदी के किनारे स्थित विष्णुपद मंदिर सभी वैष्णव मंदिरों में सर्वाधिक पवित्र माना जाता है. इसका निर्माण इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1787 में कराया था. यहां भगवान विष्णु के 13 इंच लंबे चरणचिह्न विराजमान हैं. आचार्य नवीनचंद्र मिश्र ‘याज्ञिक’ के अनुसार, गयातीर्थ को सभी तीर्थों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है और शास्त्रों में इसे पितरों के मोक्ष का प्रमुख स्थल बताया गया है.

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