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Gaya News : भरत मिलाप प्रसंग में छलक उठे श्रद्धालुओं के आंसु, गूंजी भक्ति की स्वर लहरियां

Gaya News : गनौरी टिल्हा में आयोजित श्रीराम कथा महोत्सव में उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़

गुरारू. गनौरी टिल्हा में आयोजित श्रीराम कथा महोत्सव के नौवें दिन भरत मिलाप प्रसंग ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया. अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कथा वाचिका पूज्या गौरांगी गौरी जी की ओजस्वी वाणी और मार्मिक वर्णन ने जन-जन के हृदय को झकझोर दिया. कथा स्थल पर जब भरत मिलाप का प्रसंग सुनाया गया, तो कई श्रद्धालुओं की आंखें अश्रुपूरित हो गयीं. गौरांगी गौरी जी ने भरत मिलाप का भावपूर्ण वर्णन करते हुए बताया कि जब भरत अयोध्या लौटते हैं और उन्हें राम के वनवास की सच्चाई पता चलती है, तो वे माता कैकई को कटघरे में खड़ा कर कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं होती. यह वाक्य जैसे ही कथा पंडाल में गूंजा, श्रद्धालुओं की भावनाएं उमड़ पड़ीं. भरत, माता कौशल्या और सुमित्रा के साथ पिता दशरथ के अंतिम संस्कार के बाद भगवान राम को मनाने चित्रकूट पर्वत पहुंचते हैं. लक्ष्मण जब भरत को विशाल सेना के साथ आता देखते हैं, तो क्रोधित हो उठते हैं, पर श्रीराम उन्हें शांति से भरत के आने की प्रतीक्षा करने को कहते हैं. भरत ने श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की और श्रीराम ने उन्हें गले से लगा लिया. इस मिलन दृश्य ने वातावरण को गहरे भक्ति रस में डुबो दिया. कथा के दौरान माता सीता ने भी तीनों माताओं के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया. जब भरत ने राम से अयोध्या लौटने की विनती की, तो राम ने धर्म की मर्यादा का पालन करते हुए कहा रघुकुल रीत सदा चली आयी, प्राण जाये पर वचन न जाये. राम के लौटने से इनकार के बाद भरत ने उनकी चरण पादुका को मस्तक पर रखकर विदा ली और अयोध्या में 14 वर्षों तक उन्हें ही राजा मानकर तपस्वी जीवन व्यतीत किया. कथा के अंत में सीताराम भजन, महाआरती और भक्ति गीतों के संग श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला. आसपास के क्षेत्रों से आए भक्तों ने प्रसंग को श्रवण करते हुए भरपूर भावविभोर वातावरण में भागीदारी की. श्रीराम कथा के इस मार्मिक प्रसंग ने भक्तों को न केवल रामभक्ति से सराबोर किया, बल्कि मर्यादा, त्याग और कर्तव्यबोध की गहराइयों से भी परिचित कराया.

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