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Gaya News : उत्तरी पूर्वी भारत में धूम मचा रहे मानपुरिया गमछे

Gaya News : प्रतिदिन औसतन 50 हजार पीस का हो रहा कारोबार, 1970 से पटवाटोली में चल रहा बनाने का काम

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गया. गया के पटवाटोली में बन रहे गमछे का डंका उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकतर राज्यों में बज रहा है. जिला मुख्यालय से करीब चार किलोमीटर की दूरी पर मानपुर के स्थित पटवाटोली में वर्ष 1970 से गमछा चादर, साड़ी, पितांबरी सहित दैनिक उपयोग में आनेवाले अधिकतर कपड़ों का बनाने का काम चल रहा है. यहां बुनकर परिवार के करीब 1500 घर हैं. इनमें से एक हजार से अधिक घरों में पावरलूम इकाई संचालित हैं, जहां 12 हजार से अधिक पावरलूम मशीनों की आवाज प्रतिदिन 24 घंटे गूंजती रहती है. गर्मी में अधिकतर पावरलूम में बनाये जाते हैं गमछे सस्ता, टिकाऊ व सुंदर होने के कारण गर्मी के दिनों में पूरे देश में यहां के गमछाें की मांग बढ़ जाती है. लोगों की जरूरत को पूरा करने के लिए यहां के अधिकतर पावरलूम में विशेष कर गर्मी के मौसम में गमछा बनाने का काम होता है. गर्मी के मौसम में प्रतिदिन औसतन 50 हजार पीस गमछा यहां बन रहा है, जो आम दिनों की तुलना में करीब 20 प्रतिशत अधिक होता है. पावरलूम में तैयार गमछे को बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व ओड़िशा सहित उत्तर पूर्वी भारत के अधिकतर राज्यों में बिक्री किया जाता है. 20 हजार से अधिक बुनकरों के परिवार का इस उद्योग से भरण-पोषण पटवाटोली में राजा संवाई मानसिंह के नाम पर टिकारी के राजा धीर सिंह द्वारा बुनकरों को बसाया गया था. शुरुआती में हस्तकरघा उद्योग से वस्त्रों की बुनाई बुनकरों द्वारा शुरू की गयी थी. इसके बाद वर्ष 1957 में केंद्र की तत्कालीन सरकार द्वारा केवल 10 घरों में निःशुल्क पावरलूम मशीनें दी गयी थी. लेकिन वर्ष 1970 के आसपास, यहां के लोगों ने अपने हुनर के दम पर एक बड़ा औद्योगिक माहौल तैयार कर दिया. वर्तमान में घनी आबादी होने से यहां तंग गलियों की भरमार है. इन तंग गलियों में करीब डेढ़ हजार घर हैं, जहां दिन रात 12 हजार से भी अधिक पावररूम चल रहे हैं. इन पावर लूम मशीनों पर काम कर रहे 20 हजार से अधिक बुनकरों के परिवार का भरण पोषण हो रहा है. करीब 10 हजार बुनकर स्थानीय हैं, जबकि शेष झारखंड, भागलपुर, नालंदा, जहानाबाद व अन्य जिलों से आकर इस रोजगार को ऊंचाई तक पहुंचाने में अपना श्रम लग रहे हैं. पटवा टोली में संचालित पावर लूम के अलावा रंगरेज, धागा छटाइकर्मी, कपड़ा पॉलिशकर्मी सहित अलग-अलग कैटेगरी से जुड़े करीब 10 हजार से अधिक कामगार भी इस उद्योग से जुड़े हैं, जिनके परिवारों का भी भरण पोषण इस उद्योग से हो रहा है. थोक बाजार में 25 से 60 रुपये है प्रति पीस गमछे का भाव पावर लूम तैयार हो रहे गमछे का भाव क्वालिटी व आकार के अनुसार बदलता रहता है. वर्तमान में 25 से 60 रुपये प्रति पीस की दर से पावरलूम के गमछे थोक बाजार में बिक रहे हैं. पावरलूम संचालकों की माने तो गमछा बनाने के उपयोग में आनेवाले सूट पंजाब, पानीपत व दक्षिण भारत के कोयंबटूर से मंगाये जाते हैं. यदि स्थानीय स्तर पर इसका उत्पादन होता तो निश्चित तौर पर पावर लूम के गमछे की कीमत इससे भी कम होती. गमछे का लागत अधिक होने से काफी पतला मुनाफा पर कारोबार किया जा रहा है. इस बार गर्मी के मौसम एक अरब रुपये के गमछे का कारोबार होने की संभावना है. पावर लूम संचालक द्वारा बताया गया कि बीते वर्ष गर्मी के मौसम में करीब 70 करोड रुपये के गमछे का कारोबार हुआ था. उद्योग के विकास के लिए पहल जरूरी पावर लूम व इससे जुड़े बुनकरों व संचालकों के विकास के लिए पावरलूम सर्विस सेंटर की पुनर्वापसी, ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना, बंद राजकीय रंगाई गृह को चालू करने, टेक्सटाइल्स पार्क की व्यवस्था करने, बुनकर हॉस्पिटल की व्यवस्था करने, हस्तकला विकास निगम की शाखा खोलने, धागा उत्पादन केंद्र खोलने, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में टेक्सटाइल्स की पढ़ाई शुरू करने, बुनकरों को श्रम विभाग से कार्ड निर्गत करने, खादी मॉल खोलने की व्यवस्था बेहद जरूरी है. तभी इस उद्योग व इससे जुड़े कारोबारी व बुनकरों के विकास को और गति मिल सकेगी. गोपाल प्रसाद पटवा, अध्यक्ष, बिहार प्रदेश बुनकर कल्याण संघ उद्योग को बढ़ावा के लिए बिजली में और अधिक अनुदान की जरूरत बुनकर उद्योग को और बढ़ावा के लिए राज्य स्तर पर बिजली में मिल रहे अनुदान में और वृद्धि करने की जरूरत है. बिजली महंगी होने से उत्पाद के दामों में भी वृद्धि हो जाती है. इसके कारण दूसरे राज्यों की तुलना में यहां के उत्पाद महंगे होते हैं. महंगे होने से यहां के उत्पाद की मांग अन्य राज्यों की तुलना में कम होती है. बिजली में मिल रही तीन रुपये प्रति यूनिट अनुदान को बढ़ाकर कम से कम पांच रुपये प्रति यूनिट करने से दूसरे राज्यों के मुकाबले यहां के उत्पाद के कारोबार में और वृद्धि होने की गुंजाइश बनेगी. प्रकाश राम पटवा, अध्यक्ष, मगध प्रमंडल बुनकर कल्याण संघ

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