कलम के जादूगर थे रामवृक्ष बेनीपुरी(जन्म दिवस पर विशेष)आधुनिक हिंदी साहित्य के पत्रकार व साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर, 1899 काे मुजफ्फरपुर (बिहार) में हुआ था. इनके पिता फुलवंत सिंह बेनीपुरी के साधारण किसान थे. इनकी प्रारंभिक शिक्षा बेनीपुरी गांव में ही हुई, किंतु मैट्रिक तक पहुंच कर असहयाेग आंदाेलन के कारण इन्हें शिक्षा स्थगित कर देनी पड़ी. काव्य व साहित्य की आेर इनकी स्वाभाविक रुचि बाल्यकाल से ही थी. इनका साहित्यिक जीवन 1921 से ‘तरुण भारत’ के सहकारी संपादक के रूप में शुरू हुई. बेनीपुरी जी काव्य शैली के रूप में प्रख्यात माने जाते हैं. उनके सन्निकट रहे वरीय साहित्यकार गाेवर्द्धन प्रसाद सदय उनकी शैली व सादगी जीवन के बारे में कहते-कहते भाव विभाेर हाे जाते हैं. वे कहते हैं-उनके समकालीन राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी व शिवपूजन सहाय की अपनी-अपनी एक शैली थी. शिवपूजन सहाय की शैली समुद्र की तरह स्थिर थी, राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की शैली अद्भुत व विलक्षण थी, ताे रामवृक्ष बेनीपुरी की शैली फुदकती हुई चिड़ियां की तरह थी. शायद इसलिए शिवपूजन सहाय ने कहा था कि रामवृक्ष बेनीपुरी की लेखनी है या जादू की छड़ी. रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था ‘नाम ताे मेरा दिनकर है, पर सूर्य बेनीपुरी थे’. बेनीपुरी जी की रचनाएं कहानी, उपन्यास, शब्द चित्र, निबंध, आलाेचना यात्रा व संस्मरण आदि सभी विषयाें पर है. इनकी प्रकाशित कृतियां- विद्यापति, कैदी की पत्नी, माटी की मूरतें, जयप्रकाश जीवनी, पैराें में पंख बांध कर, आम्रपाली, गेहूं आैर गुलाब, शेक्सपीयर के गांव में व नीव की ईंट आदि प्रमुख हैं. इनके संपूर्ण साहित्य का संकलन ‘बेनीपुरी ग्रंथावली’ के रूप में दस भागाें में हुआ है. बेनीपुरी जी बाल-साहित्य के भी स्रष्टा थे. इनका लिखा हुआ बाल साहित्य सुंदर व बालाेपयाेगी भी है. बेनीपुरी जी क्रांतिकारी लेखक भी माने गये हैं. रामधारी सिंह दिनकर जी के बेनीपुरी जी के विषय में लिखा, ‘बेनीपुरी जी केवल साहित्यकार ही नहीं थे, उनके भीतर वही आग नहीं थी, जाे कलम से निकल कर साहित्य बन जाती है’, वे उस आग के भी धनी थे, जाे राजनीतिक व सामाजिक आंदाेलनाें काे जन्म देती है, जाे परंपराआें काे ताेड़ती व मूल्याें पर प्रहार करती है. सही अर्थाें में बेनीपुरी की भाषा, सरल, सीधी व प्रवाहमयी है. वे हिंदुस्तानी के सच्चे समर्थक थे. उनकी दृष्टि से स्वत: प्रस्फुटित भाषा में ही विचाराें की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हाेनी चाहिए. वे हिंदी में अपने ढंग के अकेले कलाकार माने जाते हैं. 1957 में वे बिहार विधानसभा के सदस्य भी चुने गये थे. उनका निधन नाै सितंबर, 1968 काे मुजफ्फरपुर में ही हुआ. डॉ राम सिंहासन सिंह, प्राचार्य रामलखन सिंह यादव कॉलेज, गया \\\\B
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कलम के जादूगर थे रामवृक्ष बेनीपुरी
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