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47 दिनों में भी नहीं बना राजेंद्र टावर

गया: शहर की व्यवस्था भी अजीब है. जहां बड़े साहब (डीएम) बैठते हैं, वहां की दीवार जरा सी क्या टूटी, रात भर में ही उसे फिर से तैयार कर दिया गया. इतना ही नहीं, यहां पेंट फीका होने से पहले ही करा दिया जाता है. दूसरी ओर, शहर की ऐतिहासिक धरोहर, जो 47 दिनों से […]

गया: शहर की व्यवस्था भी अजीब है. जहां बड़े साहब (डीएम) बैठते हैं, वहां की दीवार जरा सी क्या टूटी, रात भर में ही उसे फिर से तैयार कर दिया गया. इतना ही नहीं, यहां पेंट फीका होने से पहले ही करा दिया जाता है. दूसरी ओर, शहर की ऐतिहासिक धरोहर, जो 47 दिनों से क्षतिग्रस्त हालत में पड़ा है, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है. बात हो रही है समाहरणालय और राजेंद्र टावर की. समाहरणालय की दीवार के क्षतिग्रस्त होने के महज एक दिन में दीवार फिर से खड़ी हो गयी, पर क्षतिग्रस्त राजेंद्र टवर को पूरा शहर देख रहा है, शहर ही नहीं, हर रोज बाहर से आने वाले लोग भी इसकी दुर्दशा देख रहे हैं. 47 दिन बीत जाने के बाद भी टावर उसी स्थिति में है.

एक दिन बनाम 47 दिन
25 जनवरी की रात एक कार ने समाहरणालय की दीवार में टक्कर मार दी थी. इससे दीवार का एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था. इसके बाद रात में ही समाहरणालय के अधिकारियों का जमावड़ा लग गया और एक दिन में दीवार खड़ी कर दी गयी. दूसरे ही दिन रंगाई-पुताई का काम भी पूरा कर लिया गया. दरअसल, मामला बड़े साहब का जो था, देखेंगे तो नाराज हो जायेंगे.

अब बात करते हैं शहर की पहचान माने जाने वाले ऐतिहासिक राजेंद्र टावर की. 22 जून की रात एक अनियंत्रित ट्रक ने टावर का हिस्सा क्षतिग्रस्त कर दिया, लेकिन इसे लेकर कोई हाय-तौबा नहीं मची. टावर को देखने कोई अधिकारी भी नहीं पहुंचे. पार्षदों को भी इसकी कोई चिंता नहीं रही. आज 47 दिन बीत चुके और टावर की यथा स्थिति बरकरार है.

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