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गया : मोक्ष चाहते विदेशियों में इस वर्ष रूसी सबसे आगे

कंचन गया : पितृपक्ष के दौरान गया में पितृश्राद्ध व पिंडदान की परंपरा ठीक कितनी पुरानी है, इसके बारे में कोई ठोस तथ्य नहीं तो नहीं मिलता, पर धर्मग्रंथों में गया श्राद्ध के महत्व के उल्लेख के आधार पर इस मामले में तरह-तरह के मत पेश किये जाते हैं. परंतु, इसके भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र की […]

कंचन
गया : पितृपक्ष के दौरान गया में पितृश्राद्ध व पिंडदान की परंपरा ठीक कितनी पुरानी है, इसके बारे में कोई ठोस तथ्य नहीं तो नहीं मिलता, पर धर्मग्रंथों में गया श्राद्ध के महत्व के उल्लेख के आधार पर इस मामले में तरह-तरह के मत पेश किये जाते हैं.
परंतु, इसके भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र की व्यापकता के बारे में संशय की गुंजाइश नहीं है. भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से में रची-बसी एक बड़ी आबादी पिंडदान की परंपरा का सदियों से पालन कर रही है. लेकिन, हाल के वर्षों या कहें कि दशकों में पिंडदान के प्रति विदेशी नागरिकों में एक नया रुझान दिखा है. भारत (गया) आकर पिंडदान कर जाने के प्रति आकर्षण बढ़ता दिख रहा है.
अब तक का जो हिसाब-किताब है, उससे पता चलता है कि इस वर्ष पिंडदान कर पितरों को मोक्ष दिलाने की इच्छा रखनेवाले विदेशियों में रूसी नागरिक सबसे अागे हैं. जहां तक नेपाली व बांग्लादेशी पिंडदानियों का सवाल है, तो इन्हें सभ्यता-संस्कृति के आधार पर गैर भारतीय के रूप में देखा भी नहीं जाता.
कर्नाटक में इस्कॉन के लिए काम करनेवाले उडुपी निवासी लोकनाथ गौड़ दास, जिनकी धर्मपत्नी भी रूसी मूल की हैं, बताते हैं कि वैज्ञानिक व तकनीकी विकास का भी इसमें एक बड़ा रोल है. वह कहते हैं, ‘दुनिया एक ग्लोबल विलेज के तौर पर डेवलप हो रही है. ट्रांसपोर्ट और कॉम्युनिकेशन में हुई प्रगति ने इंसानी जिंदगी का पूरा हिसाब-किताब बदल दिया है. लोग आसानी से एक-दूसरे के करीब पहुंच रहे हैं.
लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं, आवश्यकताओं व प्राथमिकताओं के चलते सीमाएं टूट रही हैं. इसका लाभ हमारी सनातनी परंपराओं के प्रचार-प्रसार में भी मिल रहा है. अब सात समंदर पार भी लोग भारतीय जीवन दर्शन को जानने-समझने लगे हैं, इसमें रुचि लेने लगे हैं, इसे स्वीकारने लगे हैं.’ श्री गौड़ के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, इस पितृपक्ष में भी ढेर सारे विदेशी नागरिक गया में अपने पितरों के लिए मोक्ष कामना के साथ पिंडदान कर रहे हैं.
इनमें सर्वाधिक विदेशी रूसी मूल के होंगे. उन्होंने इनकी संख्या 50 से अधिक बतायी. गया में आनेवाले विदेशी मूल के पिंडदानियों के बारे में पंडा-पुरोहितों के पास कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं होती. क्योंकि, इनमें पंडों के पुश्तैनी यजमान नहीं होते. इसलिए ये इनका रिकॉर्ड नहीं रखते.
विदेशी पिंडदानियों के लिए समन्वयक की भूमिका अदा करनेवाले श्री गौड़ ने बताया कि बुधवार को तीन रूसी नागिरकों ने पिंडदान का काम संपन्न किया है. 61 अन्य विदेशी पिंडदानी रास्ते में हैं. इनमें दो अमेरिकी, सात चीनी और तीन जर्मन नागरिक भी शामिल हैं. शेष 49 रूसी हैं

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