दोबारा गुरुवार को पटना होकर सभी बच्चों को जाना था असम
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ट्रेन नहीं छूटती, तो दफन ही रह जाता राज
दोबारा गुरुवार को पटना होकर सभी बच्चों को जाना था असम गया : बोधगया की एक संस्था में बच्चों से अनैतिक काम कराये जाने का भेद उनकी ट्रेन नहीं छूटती, तो नहीं खुलता. बच्चों के साथ उनके परिजन कामाख्या एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ने बोधगया से गया पहुंचे थे. लेकिन, समय अधिक होने के कारण गाड़ी छूट […]
गया : बोधगया की एक संस्था में बच्चों से अनैतिक काम कराये जाने का भेद उनकी ट्रेन नहीं छूटती, तो नहीं खुलता. बच्चों के साथ उनके परिजन कामाख्या एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ने बोधगया से गया पहुंचे थे. लेकिन, समय अधिक होने के कारण गाड़ी छूट गयी. इसके बाद बच्चों ने परिजनों को अपबीती बतायी, तो उनके साथ दुराचार मामला सामने आया.
जानकारी के अनुसार, बोधगया से प्रज्ञा ज्योति बुद्धिस्ट नवीस स्कूल एंड मेडिटेशन सेंटर मस्तीपुर के बच्चों को लेकर परिजन मंगलवार को स्टेशन पहुंचे. गाड़ी छूट जाने पर बच्चों के परिजनों में शामिल एक ने कहा कि असम के पंडा जी के पास रहने की जगह आसानी से मिल जायेगी. इसके बाद सभी विष्णुपद थाना स्थित श्मशान घाट रोड में बने असम भवन में पहुंच गये. किसी तरह यह मामला मीडियाकर्मियों को पता चला. उसके बाद बात जिले के आला अधिकारी के पास पहुंच गयी. असम से बोधगया पढ़ने के नाम पर लाये गये बच्चों ने अपने शरीर के कपड़े को उठाकर दिखाया कि देखिए हमलोगों की रोज पिटाई की जाती थी.
बच्चों ने बताया कि असम से यहां आने पर समय पर नहीं उठने, नंगा होकर नहीं नाचने व अनैतिक काम का विरोध करने पर डंडा से पीटा जाता था. इतना ही नहीं कई-कई दिनों तक खाना भी नहीं दिया जाता था. बच्चों ने बताया कि किसी तरह की बीमारी होने पर उसका इलाज समय पर नहीं होता था. इसके साथ ही नहाने के लिए साबुन आदि भी नहीं दिये जाते थे. इसके कारण कई के शरीर में घाव व फोड़ा-फुंसी भी हो गया है. इतना ही नहीं बच्चों को यहां की बात किसी के सामने बताने पर मारपीट अधिक करने की धमकी दी जाती थी.
गरीबी के कारण बच्चों को यहां भेजा : बच्चों के परिजनों ने बताया कि सुदूर इलाके में गांव होने के कारण वहां पढ़ाई की समुचित व्यवस्था नहीं है. इतना पैसा भी नहीं है कि हमलोग अपने बच्चों को शहर में रख कर पढ़ायें. गांव में गरीबी होने के कारण बोधगया में रहनेवाले उसके गांव के ही एक भंते ने इस संस्था के बारे में बताया. उसे बताया गया कि बच्चों को वहां भेजने पर पढ़ाई, भोजन व कपड़ा आदि का पैसा नहीं देना होगा. बोधगया में बेहतर सुविधा के तहत शिक्षा दिलायी जायेगी. इसके बाद कुछ एक वर्ष पहले तो कोई सात माह पहले अपने बच्चों को यहां भेजे थे. तीन-चार बच्चे कुछ दिन पहले भाग कर गांव पहुंचे थे. वहां वे लोग भी यहां की स्थिति की जानकारी दी थी. लेकिन, उस वक्त नहीं लगा कि स्थिति इतनी बुरी होगी. यहां पहुंच कर ऐसा लग रहा है कि बच्चे पढ़े या नहीं कम-से-कम जिंदा तो रहेंगे. बच्चों के साथ यहां नंगा नाच व दुराचार का भी मामला सामने आया है. बच्चों ने इस बात को स्वीकारा भी है.
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