Darbhanga News: दरभंगा. सीएम कॉलेज में उर्दू विभाग की ओर से क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व और प्रासंगिकता विषय पर परिचर्चा में दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. अबू बकर अबाद ने कहा कि किसी भी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं के अनुवाद की बहुत आवश्यकता है. क्षेत्रीय भाषा केवल एक भाषा ही नहीं, बल्कि उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति और सभ्यता का दर्पण भी होती है. इसलिए, जब हम क्षेत्रीय भाषाओं के अनुवादों से रूबरू होते हैं, तो हमें विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं के बारे में जानकारी मिलती है. कहा कि बिहार में कई क्षेत्रीय भाषाएं हैं, जिनमें साहित्य लेखन की प्राचीन परंपरा है. यहां की क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य का उर्दू में और उर्दू साहित्य का क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद करने का प्रयास किया जाना चाहिए. प्रो. अबाद ने कहा कि प्रो. मुश्ताक अहमद मैथिली की रचनाओं का उर्दू में और उर्दू साहित्य का मैथिली में अनुवाद करते रहते हैं. उपन्यास “मरातुल अरूस का मैथिली में “, “कन्याक आइना ” और “बाबा नागार्जुन के मैथिली उपन्यास बलचनमा ” का उर्दू में अनुवाद किया है, जो उर्दू भाषा और साहित्य के लिए उपयोगी है.
साहित्यिक दृष्टि से मैथिली भाषा का बहुत महत्व- प्रो. मुश्ताक
अध्यक्षता करते हुये प्रधानाचार्य प्रो. मुश्ताक अहमद ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं के संवर्धन का समर्थन है. इसमें प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक का अवसर प्रदान किया गया है. भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए यह बहुत उपयोगी साबित हो सकता है. प्रो. अहमद ने कहा कि मिथिला में मैथिली भाषा का साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्व है. 14वीं शताब्दी में विद्यापति जैसे महान कवि का जन्म यहीं हुआ था, जिन्होंने मैथिली कविता को शिखर तक पहुंचाया. कहा कि मैथिली भाषा के साहित्य का उर्दू में और उर्दू साहित्य का मैथिली में अनुवाद दोनों भाषाओं के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है. परिचर्चा में डॉ खालिद अंजुम उस्मानी, डॉ फैजान हैदर, डॉ शबनम, डॉ मुजाहिद इस्लाम, डॉ मसरूर हैदरी और पीजी उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. आफताब अशरफ, पत्रकार जफर अनवर शकरपुरी, प्रो. शाहनवाज आलम, डॉ रिजवान अहमद आदि ने भी विचार व्यक्त किया. धन्यवाद ज्ञापन डॉ खालिद अंजुम उस्मानी ने किया.
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