दरभंगा. वर्ल्ड नेचुरल डेमोक्रेसी (डब्ल्यूएनडी) के तत्वावधान में पर्यावरणीय नागरिकता विषय पर रविवार को ऑन लाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया. मालवीय सेन्टर फॉर पीस रिसर्च के विभागाध्यक्ष सह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. मनोज कुमार मिश्र की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में वनस्पति वैज्ञानिक सह पूर्व प्रधानाचार्य डॉ विद्यानाथ झा ने कहा कि पर्यावरण की कोई बाउंड्री नहीं है. अब दुनिया को भी हर बाउंड्री से ऊपर उठकर एक साथ मिलकर पर्यावरण की चिन्ता करनी होगी. इसकी रक्षा करनी होगी. ऐसा नहीं किया गया तो हम सब एक साथ विनष्ट हो जायेंगे. लेखक एवं पृथ्वी अधिकार कार्यकर्ता डॉ जावैद अब्दुल्लाह ने कहा कि जलवायु और पर्यावरण के अन्तर को समझने में हम भूल करते हैं. जलवायु किसी क्षेत्र में दीर्घकालिक मौसम का पैटर्न है, जिसकी औसत आयु आमतौर पर 30 वर्षों होती है, जबकि पर्यावरण पृथ्वी ग्रह का भौतिक परिवेश है. लम्बे समय तक पर्यावरण पर पड़ने वाले दूषित प्रभाव से जलवायु में परिवर्तन होता है. कहा कि ब्रिटेन में जन्में राजनीतिक सिद्धांतकार एंड्रयू डॉब्सन ने पहली बार 2012 में संयुक्त राष्ट्र रियो सम्मेलन में ‘इकोलॉजिकल सिटीजनशिप’ की बात की. उनकी पुस्तक ‘सिटीजनशिप एण्ड दी एनवायरनमेंट’ (2004), ‘ग्रीन पॉलिटिकल थॉट’ व अन्य रचना में यह मिलता है. यहीं से पर्यावरणीय नागरिकता शब्द अकादमिक विमर्श का हिस्सा बनना शुरू हुआ. ‘लाइट ग्रीन’ की अवधारणा केवल मानव-केंद्रित पारिस्थितिकीय अवधारणा है. जलवायु परिवर्तन पर डॉ अब्दुल्लाह ने कहा कि दुनिया के पहले पर्यावरणविद जर्मनी के अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने लगभग 200 साल पूर्व ही अपनी किताब ‘कॉसमॉस’ में जलवायु परिवर्तन के संकट को रेखांकित किया था. विभिन्न स्थानों से डॉ अमर जी कुमार, अमन कुमार मो. आसिफ, ओमकार लब्ध आदि विद्वान इस कार्यक्रम से जुड़े. संचालन एलपीयू के आदित्य राज ने किया.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है