दरभंगा. लनामिवि के पीजी इतिहास विभाग में शुक्रवार को विभागाध्यक्ष प्रो. संजय झा की अध्यक्षता में “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इतिहास-लेखन एवं चिंतन की प्रासंगिकता” विषय पर व्याख्यान हुआ. ऑनलाइन माध्यम से जुड़े बंसीलाल विश्वविद्यालय, हिसार के प्रो. रवि प्रकाश ने इतिहास की व्यापकता और इसकी बदलती व्याख्याओं पर चर्चा की. कहा कि इतिहास को केवल अतीत की कहानी के रूप में नहीं, बल्कि वर्तमान की समझ और भविष्य की दिशा के रूप में देखें. विश्व इतिहास की अवधारणा ने इतिहास को अधिक समावेशी और बहु-दृष्टिगत बनाया है. कहा कि कुषाण एवं गुप्त वंशों ने भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्वरूप दिया. राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की कथा हमें केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना का संदेश भी देती है. सिंधु सभ्यता, राखीगढ़ी, सरस्वती सभ्यता जैसे पुरातात्विक साक्ष्यों ने इतिहास-लेखन में नई संभावनाओं को खोला है. साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में मानव प्रवासन के अध्ययन ने इतिहास की रिक्तता को भरने का कार्य किया है. प्रो. रवि ने चिरांद, पाषाण काल और बृहत्तर भारत की संकल्पना पर प्रकाश डाला. कहा कि आधुनिक इतिहास-लेखन में इन पहलुओं को नए तरीके से देखने की आवश्यकता है.
इतिहास केवल डेटा का संग्रह नहीं, मानव जीवन के हर पहलू को समझने की कला
बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष प्रो. भोज नंदन प्रसाद सिंह ने कहा कि मूलतः इतिहास चिंतन यात्रा की शुरूआत इएच कार की प्रसिद्ध पुस्तक ””””””””इतिहास क्या है”””””””” से हुई है. इतिहास केवल डेटा का संग्रह नहीं, बल्कि मानव जीवन के हर पहलू को समझने की कला है. यह सभी विषयों की जननी है, क्योंकि प्रत्येक विषय समय और समाज से प्रभावित होता है. सार्थक इतिहास अध्ययन वही है, जो मानव को केवल ‘मानव’ ही नहीं, बल्कि ‘दैवीय संपदा से सम्पन्न’ जीव के रूप में देखने की दृष्टि दे. इतिहास वही समझ सकता है, जो दूसरों के सुख-दुःख को महसूस करने की क्षमता रखता है.
इतिहास केवल अतीत की खोज नहीं, बल्कि मानव सभ्यता का दर्पण
विभागाध्यक्ष प्रो. संजय झा ने कहा कि इतिहास केवल अतीत की खोज नहीं, बल्कि मानव सभ्यता का दर्पण है. आधुनिक समय में इतिहास का कार्य समाज को दिशा देना है, केवल जानकारी देना नहीं. इतिहास का अध्ययन केवल परीक्षा के लिए नहीं, बल्कि अनुभूति, चिंतन और मानव कल्याण की दृष्टि से भी करना वांछनीय है. समकालीन परिदृश्य में भारतीय ज्ञान परंपरा की पुनर्स्थापना में इतिहास की वैश्विक, समावेशी और मानवतावादी दृष्टि महत्त्वपूर्ण है. भारत सरकार के इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च द्वारा भी इसी प्रकार के वैश्विक इतिहास विमर्श को बढ़ावा दिया जा रहा है. इससे पूर्व विषय प्रवेश डॉ अमिताभ कुमार ने कराया. संचालन डॉ मनीष कुमार और धन्यवाद ज्ञापन डॉ ज्योति प्रभा ने किया. मौके पर प्रो. नैयर आजम, डॉ अमीर अली खान आदि मौजूद थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

