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बिहार में यहां आज भी सुरक्षित है ताड़ के पत्तों पर लिखी 1000 साल पुरानी पांडुलिपियां, अब देश विदेश के लोग कर रहे अध्ययन

Bihar News: दरभंगा स्थित मिथिला सांस्कृतिक शोध संस्थान में हजारों साल पुरानी ताड़ के पत्तों और हिमालयन पेड़ की छाल पर लिखी पांडुलिपियां सुरक्षित रखी गई हैं. देश-विदेश से लोग यहां आकर इनका अध्ययन करते हैं, ताकि प्राचीन ज्ञान और संस्कृति को समझ सके.

Bihar News: बिहार के दरभंगा जिले में स्थित मिथिला संस्कृत शोध संस्थान में आज भी हजारों साल पुरानी पांडुलिपियां सुरक्षित रखी गई हैं. ये पांडुलिपियां ताड़ के पत्तों और हिमालयन पेड़ की छाल से बने भोज पत्र पर लिखी गई हैं. सोचिए, हमारे पूर्वज कितने ज्ञानी रहे होंगे, जो हजार साल पहले भी बिना आधुनिक साधनों के सिर्फ इंक और स्याही से वेद और पुराण लिखते थे. उनकी लिखावट इतनी सुंदर और साफ होती थी कि देखने पर ऐसा लगे मानो कंप्यूटर या टाइपराइटर से लिखी गई हो.

2000 पांडुलिपियां है मौजूद

दरभंगा स्थित मिथिला संस्कृत शोध संस्थान में ताड़ के पत्तों और भोज पत्र पर लिखी करीब 2000 पांडुलिपियां आज भी सुरक्षित हैं. ये पांडुलिपियां करीब हजार साल पुरानी हैं और प्राचीन भारतीय ज्ञान और संस्कृति की अमूल्य धरोहर मानी जाती हैं. देश-विदेश से लोग यहां आकर इन दुर्लभ पुस्तकों को पढ़ते हैं, ताकि उस समय के इतिहास, परंपराओं और विद्या को समझा जा सके.

अद्भुत लेखन कला की देती है गवाही

करीब हजार साल पहले, जब लिखने के आधुनिक साधन नहीं थे, हमारे पूर्वज स्याही और कलम से ताड़ के पत्तों पर वेद और पुराण लिखते थे. उनकी लिखावट साफ, सुंदर और बेहद व्यवस्थित होती थी. ये पांडुलिपियां उनके ज्ञान और अद्भुत लेखन कला की गवाही देती हैं. यह आज भी हमें हमारे इतिहास और संस्कृति से जोड़ती हैं.

देश विदेश से आते हैं लोग

देश-विदेश से लोग मिथिला संस्कृत शोध संस्थान आकर इन पांडुलिपियों को पढ़ते और उन पर शोध करते हैं. करीब हजार साल पुरानी ये पांडुलिपियां ऐतिहासिक महत्व रखती हैं. इन्हें पढ़कर हमारे प्राचीन ज्ञान और संस्कृति के बारे में गहराई से समझा जा सकता है.

सांस्कृतिक धरोहर में से एक है पांडुलिपियां

मिथिला संस्कृत शोध संस्थान में रखी ये पांडुलिपियां सिर्फ दरभंगा ही नहीं, पूरे बिहार की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर हैं. इनका संरक्षण और अध्ययन हमारे पूर्वजो के ज्ञान और उपलब्धियों को जानने में मदद करता है. पांडुलिपियां हमारे इतिहास का अहम हिस्सा हैं और हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती हैं.

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क्या होती है पांडुलिपि

पांडुलिपि हाथ से लिखी गई होती है और जिसे छापा या प्रिंट न किया गया हो. पुराने समय में जब छपाई की मशीन नहीं थी, तब धार्मिक ग्रंथ, वेद, पुराण, कविताएं, इतिहास और ज्ञान से जुड़ी बातें ताड़ के पत्तों, भोज पत्र, कपड़े या कागज पर हाथ से लिखी जाती है. इन पांडुलिपियों में उस समय की भाषा,लिपि और कला झलकती है, इसलिए ये ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है.

(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)

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Rani Thakur
Rani Thakur
रानी ठाकुर पत्रकारिता के क्षेत्र में साल 2011 से सक्रिय हैं. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में लाइफस्टाइल के लिए काम कर रहीं हैं.

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