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ढाई साल में बाघों की संख्या तिगुनी

बेतियाः बिहार – झारखंड के साथ देश की सभी व्याघ्र परियोजना में सबसे तेजी से वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के वन क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ रही है. वर्ष 2010 में वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के वन क्षेत्र में मात्र आठ बाघ थे. इस परियोजना के वन क्षेत्र में बाघों की संख्या ढ़ाई साल में तिगुनी […]

बेतियाः बिहार – झारखंड के साथ देश की सभी व्याघ्र परियोजना में सबसे तेजी से वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के वन क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ रही है. वर्ष 2010 में वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के वन क्षेत्र में मात्र आठ बाघ थे. इस परियोजना के वन क्षेत्र में बाघों की संख्या ढ़ाई साल में तिगुनी हो गयी है. वन विभाग के कामकाज से प्रोत्साहित करने वाला आंकड़ा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ एनजीओ की मदद से 2012 में की गयी गिनती में सामने आया. बाघों की संख्या 8 से बढ़कर 22 हो गयी. अब वन विभाग फिर बाघों की गिनती ट्रैप कैमरा से कराने की तैयारी में जुट गया है.

लगेंगे 350- 400 ट्रैप कैमरे

ऑल इंडिया टाइगर मॉनीटरिंग के तहत पूरे देश में बाघों की गिनती होनी वाली है. इस योजना के तहत वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के बाघों की भी गिनती होगी. 2013- 2014 वित्तीय वर्ष में इस कार्य को पूरा किया जायेगा. डीएफओ -2 नंद किशोर ने बताया कि पिछली बार ट्रैप कैमरा की मदद से बाघों की सफल गिनती हो पायी थी. पिछले बार जहां 120 ट्रैप कैमरा लगाये गये थे, वहीं इस बार 350 से 400 ट्रैप कैमरा लगाने की योजना है.

कैसे होती है बाघों की गिनती

बाघों की गिनती के लिए सबसे कारगर उपकरण ट्रैप कैमरा है. वन क्षेत्र में जहां बाघों के आने-जाने का मुख्य मार्ग होता है, उस स्थान का पहले चयन किया जाता है. फिर उस स्थान पर एक साथ दो कैमरे लगाये जाते हैं. इससे बाघ के दायें और बायें हिस्से की तसवीर आसानी से ली जा सकती है. फिर इस तसवीर को जोड़ा जाता है. इससे बाघों की गिनती की जाती है.

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