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मोहब्बत की इस मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं…

कार्यक्रम. अखिल भारतीय मुशायरा सह कवि सम्मेलन बना गंगा जमुनी तहजीब का गवाह राहत इंदौरी सहित कई नामचीन शायरों व कवियों के कलाम पर सारी रात झूमते रहे श्रोता मोतिहारी : हम अपनी जान के दुश्मन को हम अपनी जान कहते हैं, मोहब्बत की इस मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं, जो दुनिया में सुनी जाए […]

कार्यक्रम. अखिल भारतीय मुशायरा सह कवि सम्मेलन बना गंगा जमुनी तहजीब का गवाह

राहत इंदौरी सहित कई नामचीन शायरों व कवियों के कलाम पर सारी रात झूमते रहे श्रोता
मोतिहारी : हम अपनी जान के दुश्मन को हम अपनी जान कहते हैं, मोहब्बत की इस मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं, जो दुनिया में सुनी जाए उसे कहते हैं खामोशी, जो आंखों में दिखायी दे, उसे तूफान कहते हैं” यह जुमला हिन्दुस्तान के नामचीन शायर डा. राहत इंदौरी की है. जैसे ही डाॅ. इंदौरी ने इसे पढ़ा, तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल झूम उठा. हमारा हिन्दुस्तान कैसा है और हिन्दुस्तानी कैसे दुश्मनों से भी मोहब्बत करते हैं, उनके इस जुमले ने यह साफ संदेश दे गया. मौका था रविवार की देर रात सर सैयद वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय मुशायारा सह कवि सम्मेलन का. एक से बढ़कर एक उमदा शायर, राहत ने सुनाया और श्रोताओं के बीच एक नई सोच पैदा कर दी.
मोहब्बत का तुम्हीं से आज इजहार कर बैठे…
”मोहब्बत का तुम्हीं से आज इजहार कर बैठे, हमें इंकार करना था, मगर इकरार कर बैठे” यह शेर तहजीब की राजधानी लखनउ से आयी शायरा डा. सुमन दुबे की है. जैसे ही अपना कलाम पढ़ा, युवा वर्ग अपने को रोक नहीं सका और उनके इस कलाम के साथ जुड़ गये. उनकी यह शेर ”तेरे चहरे से तेरे दिल में क्या है जान लेती हूं,पहले ही नजर में पहचान लेती हूं, युवाओं को दाद देने के लिए मजबूर कर दिया.
दिल अगर चीर के देखो तो तिरंगा निकले… ” ये जमीन भी मेरे सजदों से हुई रौशन, दिल अगर चीर के देखो, तो तिरंगा निकले” हर एक रिश्ता बुजुर्गों की निशानी हो गया है, पुराना घर अब कहानी हो गया है. यह कलाम भोपाल से तशरीफ लाये उर्दू के नामवर शयर मंजर भोपाली की है. मौजूदा हालात के संबंधों व विरासतों की सच्चाई से श्रोताओं को रू-ब-रू कर दिया. श्रोताओं ने खूब तालियां बजायी और शायर का हौसला बढ़ाया.
यह कौन है उर्दू बोल गया…
”हर एक लफ्ज से कानों में शहद घोल गया, यह कौन है कि उर्दू बोल गया” यह शेर मुम्बई से आये गंगा-जमुनी तहजीब का नमूना पेश करने वाले शायर डा. सागर त्रिपाठी की है. जैसे ही यह शेर पढ़ा, गंगा जमुनी तहजीब का एक खुबसूरत नजारा सामने आये. जमकर श्रोताओं ने उनका स्वागत किया. उनकी यह शेर ”अव्वल नहीं रहा, कभी आखिर नहीं रहा, मेरे नबी के बाद, नबी फिर नहीं रहा” ने श्रोताओं को पैगम्बर ए-इस्लाम की याद दिला दी.
दिल न चाहा मगर मुस्कराना पड़ा…
”हौसलों ने बहुत मेरा साथ दिया, दिल न चाहा मगर मुस्कुराना पड़ा, सामना पड़ा मुश्किलों से, इसलिए आंसूओं को छुपाना पड़ा” यह शेर अजीम शायरा शाइस्ता सना का है, जैसे ही तरन्नुम में अपना कलाम सुनाया, श्रोता झूमने लगे और आनंद के सागर में गोता लगाने लगे.
मेरा देश संगम है, संगम रहेगा….
मेरा देश संगम है, संगम रहेगा, यह गंगा रहेगी, यह समुंदर रहेगा” शायर डा. शंकर कैमूरी की यह शेर गंगा-जमुनी तहजीब की याद ताजा कर दी और अनेकता में एकता बनाये रखने की प्रेरणा लोगों को दी.
इतनी जल्दी में बिछड़ जाएगा सोचा भी न था…
”इतनी जल्दी में बिछड़ जाएगा यह सोचा भी न था, मैंने जी भर के उसे अभी देखा भी नही था” मलिकाए तरन्नुम निकहत अमरोही की उक्त शेर ने महबूब की याद दिला दी. मोहब्बत करने के बाद महबूब से मिलने व बिछड़ने में किस तरह के एहसास होते है, श्रोताओं को महसूस करा दिया.
सबूत दिजीए रोने से कुछ नहीं होगा…
”हैं बेगुनाह तो हाेने से कुछ नहीं होगा, सुबूत दिजीए रोने से कुछ नहीं होगा” यह शेर देवबंद से आये युवा शायर डा. नदीम शाद की है. अभी के समय बेगुनाह कैसे मारे जाते हैं और सुबूत नहीं देने पर क्या होता है, उसे श्रोताओं को रू-ब-रू कराया.
इस तरह से सारी रात श्रोता मुशायरा सह कवि सम्मेलन को सुनते रहे और अपनी जिंदादिली का सबूत देते रहे. मौके पर मजाहिया शायर चप्लू लखनउवी, डाॅ. दीपक गुप्ता व सुंदरमाले गावीं आदि ने श्रोताओं को खूब हंसाया. मुशायरा के पहले सत्र का संचालन पत्रकार ओजैर अंजुम व प्रो. अरूण कुमार ने किया. जबकि दूसरे सत्र में शायर डाॅ. कलीम कैसर ने किया. शुरुआत में छात्र जैद रहमान खां ने नबी की शान में ”तसुवुर में जो दरबार पयम्बर मुस्कुरायेगा, मेरी आखों में अश्कों का समुंदर मुस्करायेगा” नात पेश किया, जिसकी सराहना श्रोताओं ने दिल खोल कर की. अध्यक्षता सोसाइटी के सदर व मोतिहारी नप के उपमुख्य पार्षद मोहिबुल हक खां ने की.

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