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अंग्रेजों के अत्याचार व चंपारण सत्याग्रह का साक्षी नीम का पेड़ सूखने के कगार पर

मोतिहारी : अंग्रेजाें के अत्याचार और गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह का साक्षी विशालकाय नीम का पेड़ सूखने के कागार पर है. मोतिहारी से करीब नौ किमी दूर तुरकौलिया प्रखंड कार्यालय के पास स्थित करीब 120 साल पुराने इस पेड़ से पत्ते गायब हैं, डालियां सूख रही हैं. अगर जान (हरियाली) है तो पेड़ के तने […]

मोतिहारी : अंग्रेजाें के अत्याचार और गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह का साक्षी विशालकाय नीम का पेड़ सूखने के कागार पर है. मोतिहारी से करीब नौ किमी दूर तुरकौलिया प्रखंड कार्यालय के पास स्थित करीब 120 साल पुराने इस पेड़ से पत्ते गायब हैं, डालियां सूख रही हैं.

अगर जान (हरियाली) है तो पेड़ के तने में. वन विभाग ने भी अपनी रिपोर्ट डीएम रमण कुमार व विभाग को सौंप शीघ्र उपचार की आवश्यकता जतायी है. बता दे कि सत्याग्रह शताब्दी वर्ष 17 अप्रैल, 2019 को समाप्त हुआ. गांधीजी की 150वीं जयंती पूरे देश में मनायी जा रही है. लेकिन, जिस चंपारण से गांधीजी ने आजादी के आंदोलन का बिगुल फूंका था, उसका गवाह रहा नीम का पेड़ देख-रेख के अभाव में सूख रहा है.

किसानों को पेड़ से बांध कर पीटा जाता था : नीम का पेड़ इस बात का गवाह है कि यहां नीम की खेती न करने और मालगुजारी न देनेवाले मजदूर-किसानों पर निलहे अधिकारी कितना जुल्म ढाहते थे. नील व तीनकठिया कानून का विरोध करने वालों को इसी नीम के पेड़ में बांध कर कोड़े से पिटाई की जाती थी.

सूखने से बचाने को रोज डालते हैं पानी : स्थानीय राजन नामक युवक ने बताया कि पेड़ सूखे नहीं इसलिए वह रोज पानी डालते हैं. वहीं गांधी स्मारक व संग्रहालय समिति के पूर्व सचिव प्रो चंद्रभूषण पाण्डेय ने कहा कि धरोहर की रक्षा के लिए पेड़ में लगी बीमारी का ईलाज होनी चाहिए. ताकि नयी पीढ़ी के लिए वह पेड़ यादगार रहे.

तोड़ना होगा नीम के पास बना चबूतरा

जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी प्रभाकर झा ने डीएम के निर्देश पर जांच के बाद बताया कि पेड़ से सटा चबूतरा बना हुआ है. इस कारण पेड़ को पर्याप्त भोजन व पानी नहीं मिल रहा है. सूखने की मुख्य वजह यही है. बॉडी में अभी हरियाली है. अगर तत्काल चबूतरा हटा दिया जाये तो मिट्टी का ट्रिटमेंट कर संभव है नीम के पेड़ को बचाया जा सके.

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