मोतिहारी : कभी बेहतर शिक्षा का माहौल बनाने व छात्र-छात्राओं के लिए उपयोगी साबित होने वाले शहर के पुस्तकालय अभी अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उसे बचाने की चिंता न तो समाज के जिम्मेवारों को है और न ही प्रशासन को.
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अब लाइब्रेरी में ”पुस्तकें” खोजने से भी नहीं मिलतीं
मोतिहारी : कभी बेहतर शिक्षा का माहौल बनाने व छात्र-छात्राओं के लिए उपयोगी साबित होने वाले शहर के पुस्तकालय अभी अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उसे बचाने की चिंता न तो समाज के जिम्मेवारों को है और न ही प्रशासन को. शहर के हृदयस्थली में दो पुस्तकालय हैं. एक नवयुवक पुस्तकालय […]
शहर के हृदयस्थली में दो पुस्तकालय हैं. एक नवयुवक पुस्तकालय जो मेन रोड स्थित नाका नंबर-एक व दूसरा उर्दू लाइब्रेरी है जो नाका नंबर-एक के पीछे है. हम अपनी बात नवयुवक पुस्तकालय से ही शुरू करते हैं. कभी जिले के छात्रों के लिए अध्ययन केंद्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने वाला यह पुस्तकालय पिछले कई वर्षों से बंद है और पूरी तरह से अतिक्रमण का शिकार हो गया है. स्टडी रूम भी नहीं खुलता है. भवन भी उसका जर्जर है और उसके कैंपस में गंदगी का अंबार लगा रहता है.
उधर, समाजसेवी साजिद रजा कहते हैं कि दोनों पुस्तकालय शहर के धरोहर हैं और उसकी बेहतरी के लिए सकारात्मक सोच के साथ काम करने की जरूरत है. दोनों पुस्तकालय अध्ययन के लिए पूर्व में जाने जाते रहे हैं.
बत्तख मियां स्मृति भवन को भी ठीक करने की जरूरत है.
14 वर्ष बाद भी बत्तख मियां लाइब्रेरी का नहीं हुआ उद्घाटन : जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जीवन दान देने वाले बत्तख मियां की स्मृति में वर्षों पूर्व शहर के छतौनी में बने लाइब्रेरी का उद्घाटन अब तक नही हो सका.28 जनवरी 2004 को तत्कालीन मंत्री रामा देवी के विधायक ऐच्छिक कोष योजना के तहत भवन का शिलान्यास हुआ था.मौके पर केसरिया विधायक मो. ओबैदुल्लाह व पीपरा विधायक सतीश पासवान भी उपस्थित थे.
भवन बनकर तैयार तो हो गया लेकिन अब तक उसे लाइब्रेरी का रूप नहीं दिया जा सका. इस ‘बत्तख मियां स्मृति भवन’ में उर्दू लाइब्रेरी व बत्तख मियां अंसारी से जुड़े स्मृतियों को सहेजना था, लेकिन शिलान्यास के बाद भवन तैयार होते ही इसमें सीआरपीएफ ने अपना कब्जा जमा लिया. पहले काफी सालों तक वे खुद रहे फिर इसे पार्किंग के तौर पर इस्तेमाल करने लगें.
सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में जब बत्तख मियां के परिवार से जुड़े लोगों और शहर के कुछ सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने इसके लिए आवाज उठाई तो इसे इसी साल मार्च-अप्रैल महीने सीआरपीएफ ने पूरी तरह से खाली कर दिया है. लेकिन अभी भी ये भवन ऐसे ही वीरान पड़ी हुई है. इसमें लाइब्रेरी या बत्तख मियां के स्मृतियों को सहेजने की कोशिश दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रही है.
बकाया टैक्स हुआ जमा : लाइब्रेरी के पूर्व सचिव श्री खां ने बताया कि लाइब्रेरी की व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है. उनके कार्यकाल में एक लाख पांच हजार रुपये टैक्स जमा कर दिया गया. बताया कि शीघ्र ही सब कुछ ठीक हो जायेगा.
उर्दू लाइब्रेरी की कमेटी है भंग
उर्दू लाइब्रेरी की कमेटी पिछले कई महीनों से भंग है. स्टडी रूम तो खुलता है लेकिन नियमित नहीं. बताया जाता है कि 15 मई को राजा खां के इस्तीफा के बाद नयी कमेटी नहीं आयी है. छात्र-छात्राओं के पढ़ने के लिए हर तरह की पुस्तकें मौजूद है और लेकिन कमेटी नहीं होने के कारण कई तरह की परेशानी हो रही है. हालांकि, अध्यक्ष जरार खां ने रविवार तक नयी कमेटी को अमल में लाने की बात कही है.
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