डुमरांव. रेलवे स्टेशन किसी भी क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक सोच का आईना होते हैं. टुडीगंज रेलवे स्टेशन, जो दानापुर रेल मंडल के अंतर्गत आता है, बक्सर जिले का एक व्यस्त लेकिन उपेक्षित स्टेशन है. यहां से रोजाना सैकड़ों यात्री यात्रा पर निकलते है. किसी की मंजिल नौकरी है, किसी की अपनों से मुलाकात. लेकिन इन यात्राओं की शुरुआत जिन हालातों में होती है, वे किसी यात्री के लिए सम्मानजनक नहीं कहे जा सकते. खासकर जब बात हो स्टेशन परिसर में मौजूद शौचालय की. बुनियादी जरूरत या उपेक्षा का उदाहरण : टुडीगंज रेलवे स्टेशन का डाउन प्लेटफॉर्म पर बना एकमात्र शौचालय, अब बुनियादी सुविधा नहीं, बल्कि बुनियादी बेइज्जती का केंद्र बन चुका है. यहां कोई यात्री अगर मानव गरिमा के साथ अपनी स्वच्छता की जरूरत पूरी करना चाहे, तो उसे झटका लगता है. क्योंकि अंदर न पानी है, न सफाई, न ही निजता की कोई व्यवस्था. शौचालय है, लेकिन दरवाजा नहीं. दीवारें हैं, लेकिन इतनी गंदी और बदबूदार कि देख कर मन सिहर जाए. और सबसे बड़ी समस्या शौचालय के अंदर पानी की एक बूंद भी उपलब्ध नहीं है. न कोई पाइपलाइन, न टंकी, न बाल्टी, न मग. जैसे रेलवे ने सुविधा तो बना दी, लेकिन उसका उपयोग करने का हक यात्रियों को नहीं दिया. महिलाओं के लिए शर्म की बात, पुरुषों के लिए मजबूरी : कई महिलाएं स्टेशन पर होने के बावजूद अपने शौच के लिए आसपास के घरों तक जाने को मजबूर है. इसका एक कारण सिर्फ गंदगी नहीं, निजता और सम्मान की रक्षा न कर पाने वाली अव्यवस्था भी है. रेखा देवी, जो टुडीगंज से बनारस जा रही थीं, कहती हैं, हमारा कोई ध्यान नहीं है. महिलाओं के लिए ये शौचालय नहीं, अपमान है. पुरुष यात्री भी शर्मसार होते हैं, लेकिन मजबूरी में या तो खुले में शौच करते हैं या ट्रेन में चढ़ने तक रुकते है. यह न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए घातक है, बल्कि सार्वजनिक स्वच्छता के लिए भी चिंता का विषय है. बदबू की बयार में स्वच्छता की सांसें घुटीं : शौचालय की हालत ऐसी है कि आसपास खड़े रहना भी मुश्किल हो जाता है. दरवाजे की जगह सिर्फ एक खुली चौखट है, जिससे बदबू सीधे प्लेटफॉर्म तक आती है. फर्श पर महीनों से जमा मैल, दीवारों पर पेशाब के दाग, और सड़ी हुई गंध यात्रियों को अपनी ओर नहीं, उल्टी की ओर खींचती है. वहीं, पानी की अनुपस्थिति पूरी व्यवस्था को बेहाल बना देती है. शौच के बाद सफाई की कोई सुविधा नहीं. हाथ धोने का कोई साधन नहीं. न कोई टंकी, न पाइप. ऐसा लगता है जैसे पानी को शौचालय से प्रतिबंधित कर दिया गया हो. स्वच्छ भारत मिशन पर करारा तमाचा : स्वच्छ भारत मिशन का पोस्टर स्टेशन की दीवार पर चिपका दिख जाता है, मगर कुछ ही कदम आगे जाकर जब यात्री उस शौचालय में प्रवेश करता है, तो उसे समझ में आता है कि ये सिर्फ कागजी अभियान है. स्वच्छता के लिए रेलवे को हर साल करोड़ों की राशि आवंटित की जाती है. मगर जमीनी सच्चाई यह है कि टुडीगंज जैसे स्टेशनों तक वह राशि या तो पहुंचती नहीं, या पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देती है. पानी की अनुपलब्धता, गंभीर स्वास्थ्य खतरा : पानी न होने की वजह से शौचालय के उपयोग के बाद हाथ धोने की व्यवस्था नहीं है. यह सीधा सीधा संक्रामक रोगों को न्योता देने जैसा है. यात्रियों की बड़ी संख्या ट्रेन में सफर करते हुए बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों के संपर्क में आती है. बिना हाथ धोए भोजन करना, सीटों को छूना और बच्चों को गोद में लेना संक्रमण फैलाने का प्रमुख कारण हो सकता है. अगर किसी स्टेशन पर पीने के पानी की जिम्मेदारी रेलवे की होती है, तो स्वच्छता और सैनिटेशन के लिए पानी की व्यवस्था भी उतनी ही जरूरी है. यह सिर्फ व्यवस्था का सवाल नहीं, जनस्वास्थ्य का प्रश्न है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

