बक्सर. श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में किला मैदान में चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के आठवें दिन रविवार को रामलीला में धनुष यज्ञ प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें प्रभु श्रीराम ने भगवान शिव के धनुष को तोड़कर जानकी को वरण कर लिया. जबकि श्रीकृष्णलीला में चंद्रावली छलन दान लीला को जीवंत किया गया. जिसे देख दर्शक भाव विभोर हो गए. लीला का मंचन श्री धाम वृंदावन के सुप्रसिद्ध श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी ” के निर्देशन में संपन्न हुआ. गुरु विश्वामित्र से आज्ञा मिलते ही श्रीराम ने तोड़ा धनुष पिछले दिन के पुष्प वाटिका प्रसंग के बाद आगे का प्रसंग शुरू होता है. जिसमें दिखाया गया कि राजा जनक भगवान शिव से धनुष लेकर महल में आते हैं और प्रति दिन उसकी पूजा करते हैं. उसी बीच एक दिन राजा जनक किसी कार्य वश महलों से बाहर होते हैं. महारानी सुनैना धनुष की पूजा करना भूल जाती है. यह देखकर सीता जी अपने एक हाथ से धनुष को उठाकर वहां उग आए घास आदि की सफाई कर गोबर का चौका लगाती है और उसका पूजन करती है. यह बात राजा जनक सुनते हैं तो उसी समय स्वयंवर की घोषणा करते हुए कहते हैं कि जो राजा इस धनुष का खंडन करेगा उसी से सीता का विवाह होगा. स्वयंवर आयोजित होता है. सभा में गुरु विश्वामित्र संग श्रीराम और लक्ष्मण पहुंच हैं. जनक जी उन्हें ससम्मान उच्चासान पर बिठाते हैं. सभागार देश- देशांतर से आये हुए राजाओं से भर जाता है. उसी बीच सभा में पहुंचे बाणासुर व रावण के बीच तल्ख संवाद होता है और दोनों वहां से चले जाते हैं. तब धनुष यज्ञ की घोषणा होती है. एक-एक कर सभी राजा धनुष उठाने का प्रयास करते हैं और असफल हो जाते हैं. सभी राजाओं को धनुष उठाने में विफल होते देख जनक जी क्रोधित होते हैं और पृथ्वी को वीरों से ही खाली बता देते हैं. राजा जनक के इस कड़वे वचन को सुन लक्ष्मण जी खड़े होकर जनक जी के ऐसे वचन बोलने का विरोध करते हैं. तब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्रीराम खड़े होते हैं और धनुष का खंडन करते हैं. धनुष के खंडन होने पर जानकी जी श्रीराम के गले में वरमाला पहनाती हैं और दर्शक जय सियाराम का उद्घोष करने लगते हैं. चंद्रावली लीला देख भाव विभोर हुए दर्शक दिन में कृष्ण लीला के दौरान मथुरा वृंदावन के कलाकारों द्वारा चंद्रावली छलन दान लीला का मंचन किया, जिसमें दिखाया गया कि भगवान श्रीकृष्ण के साथ रहने वाले ग्वाल बाल बरसाना के जंगल में गाय चराने जाते हैं, इस दौरान भूख लगने पर निकट के गांव रिठौरा निवासी गोपी चंद्रावली के यहां पहुंचकर माखन और मिसरी का दान मांगते है. लेकिन चंद्रावली घर में रखा माखन मिसरी के साथ-साथ अन्य व्यंजनों को देने से मना कर देती है. इसकी जानकारी ग्वाले अपने सखा श्रीकृष्ण को देते हैं. श्रीकृष्ण अपना मोहिनी रूप बदलकर चंद्रावली की बहन के रूप में घर पहुंचते हैं. जिसकी अतिथि सत्कार में 56 भोग, 306 व्यंजन तैयार करती है. उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण घर में रखे सारे व्यंजन, माखन, मिसरी खा जाते हैं. यह देखकर वह आश्चर्य चकित हो जाती है. भगवान श्रीकृष्ण अपने स्वरूप में आकर कहते है कि चंद्रावली मैने तुम्हें छलने के लिए यह रूप धारण किया था. कभी किसी भूखे को अपने घर से झूठ बोलकर वापस नहीं भेजना चाहिए. तुमने मेरे ग्वाले साथियों द्वारा भूख लगने पर माखन, मिश्री दान नहीं दिया था. यह प्रसंग देख श्रोता भाव-विभोर हो गये. लीला मंचन के दौरान समिति के सचिव बैकुण्ठनाथ शर्मा सहित अन्य पदाधिकारी व सदस्य मुख्य रूप से मौजूद थे.
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