चौसा
प्रखंड अंतर्गत रामपुर पंचायत सरकार भवन परिषर में चल रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में श्रीमद् भागवत कथा में कथावाचक गोविंद कृष्ण महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला, माखन चोरी तथा गोवर्धन पूजा की कथा श्रद्धालुओं को सुनाते हुए कहा कि भगवान की लीलाएं मानव जीवन के लिए प्रेरणादायक हैं. भगवान कृष्ण ने बचपन में अनेक लीलाएं की. बाल कृष्ण सभी का मन मोह लिया करते थे. नटखट स्वभाव के चलते यशोदा मां के पास उनकी हर रोज शिकायत आती थी. मां उन्हें कहती थी कि प्रतिदिन तुम माखन चुरा के खाया करते हो, तो वह तुरंत मुंह खोलकर मां को दिखा दिया करते थे कि मैंने माखन नहीं खाया. भगवान कृष्ण अपनी सखाओं और गोप-ग्वालों के साथ गोवर्धन पर्वत पर गए थे. वहां पर गोपिकाएं 56 प्रकार का भोजन रखकर नाच गाने के साथ उत्सव मना रही थीं. कृष्ण के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज के ही दिन देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होता है. इसे इन्द्रोज यज्ञ कहते हैं. इससे प्रसन्न होकर इंद्र व्रज में वर्षा करते हैं, जिससे प्रचुर अन्न पैदा होता है. भगवान कृष्ण ने कहा कि इंद्र में क्या शक्ति है. उनसे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है. इसके कारण ही वर्षा होती है, अतः हमें इंद्र से बलवान गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए. बहुत विवाद के बाद श्री कृष्ण की यह बात मानी गई और व्रज में गोवर्धन पूजा की तैयारियां शुरू हो गयी. महाराज ने कहा कि तीन लोक के स्वामी योगीराज श्रीकृष्ण चाहे दुनिया के लिए भगवान हो, लेकिन ब्रजवासियों के लिए सिर्फ नंद के लाला व माखन चोर के नाम से ही प्रसिद्ध है. द्वापरयुग में जब गोपियों ने माखन चोर कन्हैया को दही का दान नहीं दिया. तो उन्होंने उनकी मटकी फोड़ दी. हंसी- ठिठोली के बीच छीना झपटी में यशोदा नंदन ने दही का दान ने देने पर सखियों की दही से भरी मटकी फोड़ दी. अद्भुत लीला को सुनकर श्रद्धालु आनंद से भाव- विभोर हो उठे. महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन पर्वत लीला का प्रसंग सुनाया.श्रद्धालु पर्वत का उंगली पर उठा लेने का वर्णन सुनकर मंत्रमुग्ध हो गए. कथावाचक ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं से जहां कंस के भेजे विभिन्न राक्षसों का संहार किया, वहीं ब्रज के लोगों को आनंद प्रदान किया. प्रसंग में बताया कि इंद्र को अपनी सत्ता और शक्ति पर घमंड हो गया था. उसका गर्व दूर करने के लिए भगवान ने ब्रज मंडल में इंद्र की पूजा बंद कर गोवर्धन की पूजा शुरू करा दी. इससे गुस्साए इंद्र ने ब्रज मंडल पर भारी बरसात कराई. प्रलय से लोगों को बचाने के लिए भगवान ने कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. सात दिनों के बाद इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ. कथा के दौरान संगीतमय भजनों पर श्रद्धालु महिलाओं ने भावविभोर कर नृत्य भी किया.
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