बक्सर/केसठ. हमारी भारतीय संस्कृति में करवा चौथ त्योहार का विशेष महत्त्व है. व्रत का विशेष विधान है. सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं. इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं. अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक प्रेमाचार्य पीतांबर जी महाराज ने कहा कहा कि करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है. एक प्राचीन कथा के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही हैं . ऐसी मान्यता है कि एक बार देवताओं और दानवों के बीच युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी. ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की. ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी. ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया. ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की. उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया. उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था. माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई. इस व्रत में मेहंदी का खास महत्त्व है. इसे सौभाग्य की प्रतीक माना जाता है. इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा- अर्चना करने का विधान है. करवा चौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है. उनके घर में सुख, शांति, समृद्धि और संतान सुख मिलता है. इस संदर्भ में महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है. भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है. श्रीकृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था. इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की.
करवा चौथ की पूजन विधि : करवा चौथ का व्रत रखने वाली स्त्री सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान आदि करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहे कि मैं अपने सौभाग्य एवं पुत्र-पौत्रादि तथा निश्चल संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी. यह व्रत निराहार ही नहीं, अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है. इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है.चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए.
सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें, दान-दक्षिणा दें. रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को चलनी से देखकर अर्घ्य दें. आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें. इससे पति की उम्र लंबी होती है. तत्पश्चात पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ें. ॐ शिवायै नमः से पार्वती का, ॐ नमः शिवाय से शिव का, ॐ षण्मुखाय नमः से स्वामी कार्तिकेय का, ॐ गणेशाय नमः से गणेश का तथा ॐ सोमाय नमः से चंद्रमा का पूजन करें. लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें. एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें. करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें. लेकिन इस बार करवा चौथ पर भद्रा दोष की वजह से नव विवाहिताओं के लिए इस व्रत का शुभारंभ निषेध है. ऐसी स्थिति में लड्डू गोपाल को स्नान करवा कर चरणामृत होठों से स्पर्श करवा कर व्रत आरंभ करने से भद्रा दोष समाप्त हो जायेगा. भद्रा काल की निवृत्ति के लिए ये बारह नाम लेना न भूलें- थान्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली और असुरक्षयकारी.
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