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किसानो की प्रेरणा बन रहे मौलानगर के रामबरन

अधिक उपज और मुनाफ़ा की होड़ में रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों की निर्भरता के अलग किसानी की पहचान दिला रहे मौलानगर गांव के रामबरन आज किसानो के प्रेरणा पुरुष बन गये है.

शेखपुरा.अधिक उपज और मुनाफ़ा की होड़ में रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों की निर्भरता के अलग किसानी की पहचान दिला रहे मौलानगर गांव के रामबरन आज किसानो के प्रेरणा पुरुष बन गये है. चार दशक पुरानी परम्परागत कृषि और फसलों को जैविक पद्धति से उपजाने की विधि जानने के लिए जिले भर के किसान रामबरन के गांव मौलानगर पहुंच रहे है. शेखपुरा जिले के अरियरी प्रखंड के मौल नगर गांव के किसान रामबरन कुमार की जो पहले आम किसानों की तरह रासायनिक खेती करते थे. लेकिन फिर भी किसान अपने स्वास्थ्य और अपने घर वालों के स्वास्थ्य को लेकर काफी सजग है. हालांकि इस कृषि में उन्हें परिश्रम के अनुसार सफलता नहीं मिल रही है. किसान रामबरन कहते है की रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक आज मनुष्य के साथ साथ जीव जन्तुओं के स्वास्थ्य को बुरी तरह खराब कर रहा है.ऐसे में अपने खान-पान के लिए प्राकृतिक खेती कर खुद को निरोग बना रहा है. हालांकि पहले स्तर पर तो दूसरे किसान उसे पर उसकी हंसी और मजाक उड़ाते थे. लेकिन उसके निरोग किया को देखअब दूसरे किसान भी प्राकृतिक खेती की ओर रुख कर रहा है.

स्वास्थ्य को हो रहे नुक्सान से मिली सबक,परम्परागत खेती को अपनाया.

किसान रामबरन यादव बताते हैं कि पहले वह भी 10 बीघा में खेती करते थे. लेकिन सेहत को लेकर काफी चिंता बनी रहती थी. ऐसे में प्राकृतिक खेती की ओर रुख किया और आज दो बीघा में दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले सभी तरह के खाद्य सामग्री को उगाते हैं. रामबरन कुमार प्रकृति खेती 2017 से शुरू किया और वे धान, गेहूं,मक्का, तीसी,सरसों,मरुआ,चना ,मसूर के अलावे बैगन,मिर्च,धनिया,टमाटर, मूली,आलू, कोभी प्याज सहित अन्य तरह के सब्जी उगते है.

अन्य प्रदेशों में लिया प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण

प्रगतिशील किसान रामवरण कुमार बताते है कि प्राकृतिक खेती के लिए बिहार के बाहर प्रशिक्षण लिया. उन्होंने कहा कि सबसे पहले वे उतर प्रदेश के झांसी में 7 दिनों का प्रशिक्षण डॉ सुभाष पालेकर से लिया. जबकि राजस्थान के भरतपुर में 7,महाराष्ट्र में 7 दिन और यूपी के अयोध्या में 4 दिनों का प्रशिक्षण लिया है. और इस दौरान काफी कुछ नया सीखने का मौका मिलने की बात कही है. रामवरण कुमार बताते है कि प्रकृति खेती की अच्छी समझ होने के कारण कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा मास्टर ट्रेनर बनाया गया है. जिले के कई स्थानों पर जाकर किसानों को प्रकृति खेती करने को लेकर जागरूकर किया, साथ ही किसानों को प्रशिक्षण भी दिया. लेकिन विभाग द्वारा अभी तक कोई सहयोग नहीं किया गया. खुद के पैसे लगाकर गांव गांव जाकर किसानों को प्राकृति खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. किसान को कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र पर भरोसा है कि उनके परिश्रम का पारिश्रमिक आज ना तो कल मिलने की आस में लगातार सेवा दे रहे है.

जीवामृत जैविक उर्वरक खुद करते है तैयार

मौलानगर के किसान रामवरण कुमार 2017 से ही जैविक कृषि से जुड़े है. किसान रामवरण कुमार जैविक खेती में खाद के तौर पर इस्तेमाल के लिए खुद जीवामृत नामक उर्वरक तैयार करते है. उन्होंने बताया कि इसके लिए किसान के पास दो देशी नस्ल की गाय से दो बीघा की खेती कर सकते है. उन्होंने कहा कि उनके पास दो देशी नस्ल के गाय,दो बाच्छी एक नंदी है. उन्होंने कहा कि जीव अमृत खाद बनाना काफी आसान है.एक बड़े से ड्रम में दो सौ लीटर पानी,10 किलोग्राम गोबर,10 किलोग्राम गौमूत्र,एक किलोग्राम बेसन,एक किलोग्राम गुड,एक मुट्ठी जीवाणु मिट्टी का घोल बना लेना है. जीवामृत खाद बनने में गर्मी के दोनों में 48 घंटे जबकि सर्दी के दिनों में 96 घंटे का समय लगता है.जबकि इस दौरान सुबह शाम एक एक मिनट तक लकड़ी के डंडे से घोल को मिलना है और इसके बाद जीव अमृत खाद तैयार हो जाता है और इसमें लगात काफी कम है इस खाद का प्रयोग एक बीघा से प्रयोग किया जा सकता है. ज्यादा के उपयोग के लिए आप मात्रा बढ़ा सकते है.

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