15.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

नालंदा विश्वविद्यालय में हुआ ज्ञान–महाकुंभ

नालंदा विश्वविद्यालय द्वारा सोमवार को “राजा ऋषभदेव की परंपरा: संस्कृति एवं सभ्यता के निर्माता” विषयक एक दिवसीय बौद्धिक सेमिनार का आयोजन किया गया.

राजगीर. नालंदा विश्वविद्यालय द्वारा सोमवार को “राजा ऋषभदेव की परंपरा: संस्कृति एवं सभ्यता के निर्माता” विषयक एक दिवसीय बौद्धिक सेमिनार का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ दीप-प्रज्वलन के साथ हुआ. उद्घाटन सत्र में कुलपति प्रो. सचिन चतुर्वेदी ने राजा ऋषभदेव को विश्व का प्रथम दार्शनिक बताते हुए उनके नैतिक, सामाजिक और ज्ञान-परंपरा संबंधी योगदानों को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि ऋषभदेव की शिक्षाएँ भारतीय सभ्यता की बौद्धिक और दार्शनिक नींव में केंद्रीय स्थान रखती हैं. उद्घाटन सत्र में स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज़ के डीन प्रो. अभय कुमार सिंह, लब्धि विक्रम जन सेवा ट्रस्ट के जैनेश शाह तथा मिथिला विश्वविद्यालय के डॉ. बी. के. तिवारी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे. इन विद्वानों ने अपने शोध, अनुभव और विश्लेषण साझा करते हुए छात्रों, शोधार्थियों और शिक्षकों को विषय की व्यापकता और नई दृष्टियों से अवगत कराया. पहला शैक्षिक सत्र राजा ऋषभदेव की ऐतिहासिक व सभ्यतागत महत्ता पर केंद्रित था. डॉ. लता बोथारा, डॉ. प्रांशु समदर्शी, प्रो. अभय कुमार सिंह और डॉ. तोसाबंता पधान ने ऋषभदेव की बहुआयामी भूमिका दार्शनिक आधारशिला, सामाजिक संरचना और आध्यात्मिक परंपरा पर विस्तार से प्रकाश डाला. सत्र का संचालन डॉ. सेजल शाह ने सहज और प्रभावी शैली में किया. द्वितीय सत्र में प्रो. वीनस जैन, डॉ. सेजल शाह और डॉ. आज़ाद हिंद गुलशन नंदा ने भारतीय शास्त्रों में समाज संरचना, शासन-व्यवस्था तथा सांस्कृतिक स्मृति के प्रारंभिक स्वरूपों पर विचार प्रस्तुत किए. वक्ताओं ने कहा कि सामाजिक संस्थाओं और परंपराओं के विकास में ऋषभदेव की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है. इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. कश्शफ गनी ने की. तृतीय एवं अंतिम सत्र में वरुण जैन, अर्पित शाह और श्रेयांश जैन ने नैतिक मूल्यों, तीर्थ-परंपराओं और संस्थागत नैतिकताओं की उत्पत्ति पर अपने दृष्टिकोण रखे. डॉ. पूजा डबराल ने संचालन करते हुए चर्चाओं को उद्देश्यपूर्ण दिशा दी. समापन सत्र की अध्यक्षता एसबीएसपीसीआर के डीन प्रो. गोदाबरीश मिश्रा ने किया. इस अवसर पर वीरायतन की साध्वी उपाध्याय यशाजी महाराज ने प्रेरक समापन संबोधन दिया. उन्होंने दिनभर के विमर्शों का सार प्रस्तुत किया। डॉ. प्रांशु समदर्शी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।स्थानीय विद्यालयों के शिक्षक-विद्यार्थियों ने भी सहभागिता पहल के तहत सक्रिय भागीदारी की. नालंदा विश्वविद्यालय जैन दर्शन, इतिहास और परंपरा पर शोध को सुदृढ़ करने तथा अंतरविषयी संवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ऐसे सेमिनारों का लगातार आयोजन करता रहा है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel