शेखपुरा. प्रधान जिला जज पवन कुमार पांडे ने हत्या के एक मामले में हम पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष मो मौफिज इमाम को दोषी पाया है. मौफिज इमाम जिले के अरियरी गांव के रहने वाले हैं. उनके खिलाफ 6 जनवरी 2022 को भूमि सर्वे के दौरान अपने गांव के ही निसार खान के हत्या का आरोप लगाया गया था. इस संबंध में वे लंबे समय से जेल में बंद हैं. इस मामले के अंतिम कार्रवाई पूरा करते हुए सजा सुनाये जाने को लेकर उन्हें स्थानीय मंडल कारा से कड़ी सुरक्षा में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया. दोषी पाये जाने के बाद उन्हें पुनः जेल भेज दिया गया. सजा की अवधि पर सुनवाई के लिए उन्हें 26 अप्रैल को पुनः न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है. इस मामले में हत्या के उनके सहयोगी और ग्रामीण मनौवर खान, इलियास खान, नौशाद खान, मुंशीफ खान, इसराइल खान आदि को पहले ही न्यायालय द्वारा दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा प्रदान की जा चुकी है. इस पूरे मामले की जानकारी देते हुए जिला लोक अभियोजक उदय नारायण सिन्हा ने बताया कि 6 जनवरी 2022 को हम पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष सहित अन्य लोगों ने घातक हथियार से निसार खान को भूमि सर्वे कार्य के दौरान मारपीट कर जख्मी कर दिया था. जिससे उसकी मौत इलाज के दौरान हो गयी. इस मामले में मृतक के पुत्र इस्फाक खान द्वारा स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. इस मामले में हम पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष गिरफ्तारी से बचते हुए फरार चल रहे थे. जिन्हें बाद में न्यायालय के समक्ष कानूनी कार्रवाई के लिए प्रस्तुत किया जा सका. जिसके कारण उनकी मामले की सुनवाई अलग से करते हुए उन्हें दोषी पाया गया.
मारपीट के मामले में पिता के साथ दो पुत्र दोषी
शेखपुरा. न्यायिक दंडाधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने मारपीट के मामले में जिले के करंडे थाना अंतर्गत कुरमुरी गांव के तीन लोगों को दोषी पाया. न्यायालय द्वारा राम लखन यादव और उसके दो पुत्र संजय यादव तथा विजय यादव को भारतीय दंड विधान की धारा 323, 341 और 325 के तहत दोषी पाया. इस प्रकार 18 साल पुराने मारपीट के इस मामले का पटाक्षेप हुआ. इस संबंध में जानकारी देते हुए अनुमंडल अभियोजन पदाधिकारी संजीव कुमार ने बताया कि 2007 में बदमाशों ने अपने गांव के ही राजकुमार यादव की पत्नी भाषो देवी को के साथ मारपीट कर बुरी तरह जख्मी कर दिया था. न्यायालय ने कार्रवाई समाप्त करते हुए तीनों को दोषी पाते हुए उन्हें न्यायालय के निगरानी में अगले तीन साल तक रहने का बांड भरवाते हुए मुकदमे से मुक्त किया. न्यायालय द्वारा इस संबंध में दोषी को पीड़िता को 5000 रुपये मुआवजा के तौर पर भुगतान करने का भी आदेश दिया.
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