बिहारशरीफ. विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तीन दिन बीत चुके हैं, लेकिन जिले का राजनीतिक माहौल अभी भी पूरी तरह चुनावी रंग में रंगा हुआ है. एक ओर जहां जीते हुए उम्मीदवारों को बधाई देने और उनके स्वागत का सिलसिला जोरों पर है, वहीं दूसरी ओर हार-जीत के गणित को समझने की कवायद भी उसी तेजी से जारी है. प्रखंड और पंचायत स्तर के पार्टी कार्यकर्ता अपने-अपने तरीके से विजयी उम्मीदवारों का स्वागत करने में जुटे हुए हैं. जगह-जगह अभिनंदन समारोह, मिठाई बांटने और स्वागत जुलूस निकाले जा रहे हैं. ठेकेदारों से लेकर स्थानीय छोटे-बड़े नेताओं तक, सभी अपनी पहुंच और नजदीकी का परिचय देने में लगे हैं. इधर, कुछ जीते हुए विधायक पटना का रुख कर चुके हैं. उद्देश्य साफ है कि नई सरकार बनने के साथ मंत्रिमंडल में अपनी मजबूत दावेदारी पेश करना और समर्थकों को संकेत देना कि वे सत्ता के केंद्र में सक्रिय भूमिका निभाने जा रहे हैं. नतीजे आने के बाद राजनीतिक दलों के कार्यालयों में एक अलग ही हलचल है. हार-जीत के पीछे की बूथवार कहानी समझने के लिए पार्टी के आईटी सेल के विशेषज्ञ और वरिष्ठ नेता मतदाता सूची का बारीकी से विश्लेषण कर रहे हैं. कहां वोट बढ़े, कहां घटे, किस बूथ पर अपेक्षित समर्थन नहीं मिला और किसने पलड़ा भारी कर दिया. इन सबका मंथन जारी है. दिलचस्प बात यह है कि जहां जीते हुए उम्मीदवारों के इर्द-गिर्द भीड़ जुटी है, वहीं हारे हुए उम्मीदवार अपने कार्यकर्ताओं की तलाश में भटक रहे हैं. जिन लोगों ने चुनाव के दौरान हजार वोट दिला देंगे, उनकी पकड़ क्षेत्र में पकड़ मजबूत है जैसे बड़े-बड़े दावे किए थे. नतीजे आते ही ऐसे कई छोटे नेता अचानक गायब हो गए हैं. इनकी तलाश में हारे हुए उम्मीदवार और उनके नजदीकी सहयोगी जुटे हुए हैं, ताकि यह समझ सकें कि दावे और हकीकत में इतना अंतर कहां रह गया. जिले में इस समय राजनीति दो धाराओं में बह रही है. एक तरफ जीत का जश्न, दूसरी तरफ हार का विश्लेषण, लेकिन दोनों ही गतिविधियों ने जिले के राजनीतिक माहौल को चुनाव बाद भी पूरी तरह सक्रिय बनाए रखा है. चुनाव बीत गया पर बधाई, स्वागत, रणनीति, समीक्षा से राजनीति की गर्मी अभी बरकरार है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

