प्रखंड के अधिकतर चापाकल खराब, कैसे बुझेगी प्यास
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गिरा जल स्तर, जेठ में भी सूख रहे हलक
प्रखंड के अधिकतर चापाकल खराब, कैसे बुझेगी प्यास कोइलवर : तपती धरती, चिलचिलाती धूप, ऊपर से शरीर को झुलसाते गरम हवा के थपेड़े, ऐसे में प्यास लगना लाजिमी है, परंतु प्यास बुझेगी कैसे? प्रखंड की नगर पंचायत समेत सभी पंचायतों में प्यास बुझाने की सरकारी कवायद विफल नजर आ रही है. जैसे-जैसे गरमी बढ़ रही […]
कोइलवर : तपती धरती, चिलचिलाती धूप, ऊपर से शरीर को झुलसाते गरम हवा के थपेड़े, ऐसे में प्यास लगना लाजिमी है, परंतु प्यास बुझेगी कैसे? प्रखंड की नगर पंचायत समेत सभी पंचायतों में प्यास बुझाने की सरकारी कवायद विफल नजर आ रही है. जैसे-जैसे गरमी बढ़ रही है, पारा भी चढ़ता जा रहा है और लोगों के सामने पेयजल की समस्या विकराल होती जा रही है. बढ़ती गरमी के साथ जलस्रोतों का जलस्तर भी नीचे जा रहा है.
चापाकल, कुआं, पोखर, नदी सहित अन्य प्राकृतिक जलस्रोत सूखते जा रहे हैं. बेबस लोग प्यास बुझाने के लिए सोन नद के पानी का भी सहारा लेने लगे हैं. प्रखंड परिसर स्थित लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की जलमीनार शोभा की वस्तु बनी हुई है. इसका मुख्य कारण यह भी है कि इस जलमीनार के जिम्मे क्षमता से अधिक उपभोक्ताओं को पानी पहुंचाने का भार है. पूरे प्रखंड में इस तरह के तीन और जलमीनारें हैं, जिनकी स्थिति भी कमोबेश यही है. प्रखंड की पंचायतों में मुखिया व विधायक फंड से लगाये गये चापाकलों में से अधिकतर ने पानी उगलना बंद कर दिया है. इनमें से कुछ मामूली खराबी की वजह से बंद पड़े हैं, तो कुछ घटिया व निम्नस्तरीय तरीके से अधिष्ठापन की वजह से खराब हो गये.
गिरते जलस्तर से नागरिकों के समक्ष उत्पन्न पेयजल की समस्या के निराकरण के लिए नगर पंचायत, कोइलवर की बैठक में सभी वार्डों में जलमीनार स्थापित कराने का प्रस्ताव पारित किया गया, परंतु राशि के अभाव में इस जनकल्याणकारी योजना को धरातल पर उतारने में में देर हो रही है. पानी की समस्या से जूझ रहे लोग कहते हैं कि सरकार द्वारा मुख्यमंत्री चापाकल योजना को बंद कर दिया गया, जबकि इसके एवज में किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं दी गयी. सरकार की जल योजना के तहत घर घर नल से पानी पहुंचाने के निश्चय को अमलीजामा पहनाये जाने की दिशा में कोई सकारात्मक कदम बढ़ने की उम्मीद नहीं दिखायी दे रही है.
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