किसी भी क्षेत्र की संस्कृति वहां की भाषा, कला व पर्व-त्योहार से प्रतीत होता है. अंग व बंग की संस्कृति का संगम शहर में रहने वाले बंगाली, पंजाबी व मारवाड़ी समुदाय के लोगों द्वारा महापर्व छठ में भी दिखता है. वेलोग केवल इस पर्व में शामिल ही नहीं होते, बल्कि सूप व चढ़ावा चढ़ाकर भगवान सूर्य को अर्घ देते हैं. मारवाड़ी समाज के श्याम प्रेमी सुरेश मोहता परिवार के साथ देते हैं सूर्य को अर्घ मारवाड़ी समाज के काजवलीचक निवासी सुरेश मोहता व पत्नी शशि मोहता ने बताया कि पिछले 10 साल से छठ कर रहे हैं. खुद दूसरे को सूप व अन्य सामान देकर छठ कराते हैं. खुद भी गंगा घाट जाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं. छठी मैया व भगवान सूर्य पर आस्था जन्म से ही बनी हुई है. यही पर्व हैं, जिसमें चोर-उचक्का भी किसी तरह का अपराध नहीं करते हैं. सभी वर्ग व जाति का मेलजोल दिखता है. बंगाली समाज के अशोक सरकार 40 साल से करते हैं छठ बरारी काजीपाड़ा कॉलोनी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अशोक सरकार पिछले 40 साल से पत्नी शिक्षिका सरिता दत्त सरकार के साथ छठ महापर्व कर रहे हैं. उनके यहां से दूसरे को सूप व चढ़ावा प्रदान कर छठ पर्व कराया जाता है. बताया कि मां भी करती थी. बेटा बैंक मैनेजर है. घर में सुख-समृद्धि है. यह पर्व मैं अकेला नहीं, बल्कि बंगाली समुदाय के कई लोग करते हैं. सिख समाज की जसविंदर कौर दे रही है सामाजिक एकता का संदेश सिख समाज से आने वाली पूर्व शिक्षिका जसविंदर कौर पिछले 12 साल से छठ कर रही हैं. छठ के लिए दूसरे लोगों को सूप व चढ़ावा देती हैं. साथ ही छठ पूजा शुरू होने पर प्याज-लहसुन खाना बंद कर देतीं हैं. अर्घ के दिन खुद भी गंगा तट पर जाकर भगवान सूर्य को अर्घ देती हैं. पहले जैसी आस्था थी, वही आस्था आज भी है. इसके अलावा युवाओं की टोली के साथ व्रतियों की सेवा में भी योगदान करते हैं. बिहारी समाज के गिरीशचंद्र भगत पर्यावरण संरक्षण को दे रहे बढ़ावा कलवार सभा के अध्यक्ष एवं काली पूजा महासमिति के प्रवक्ता गिरीशचंद्र भगत अपनी मां की प्रेरणा से पत्नी रंजना भगत के साथ मिलकर छठ कर रहे हैं. उन्होंने परिवार व समाज के कल्याण के लिए शुरू किया. बताया कि यह काफी कठिन पर्व है. इसमें उपवास की अवधि सबसे अधिक है. इसमें संयम, अनुशासन और सामाजिक सहयोग की जरूरत होती है. यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलता है.
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