जिले के विश्वविद्यालय क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालय बाल निकेतन अनुदानित विद्यालय भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता की भेंट चढ़ता जा रहा है. कहने को तो यह विद्यालय सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करती है, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सके, लेकिन वास्तविकता अलग है. विद्यालय भवन जर्जर है और सुविधाएं नाम मात्र की हैं. इसलिए बच्चों की संख्या घटती जा रही है. विद्यालय में नर्सरी से लेकर 10 तक की कक्षा दर्ज हैं, लेकिन पढ़ने मुश्किल से 50 बच्चे आते हैं. वर्ग छह से आठ तक के बच्चों को दो कमरे में बैठाकर पढ़ाया जाता है. प्राचार्य विनय भूषण ने बताया कि विद्यालय में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, संस्कृत जैसे विषयों के लिए एक ही स्थायी शिक्षक हैं. मानदेय नहीं मिलने पर भी दो सेवानिवृत्त शिक्षक स्वेच्छा से बच्चों को पढ़ाते हैं. बताया कि विद्यालय में बिजली की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है. जबकि पीने के लिए साफ पानी भी उपलब्ध नहीं है. पिछले तीन महीनों से बाढ़ पीड़ित विद्यालय परिसर में रह रहे हैं. बच्चों के लिए स्कूल तक पहुंचने का पक्की सड़क तक नहीं है. 14 वर्षों से नहीं मिला अनुदान
प्रधानाचार्य ने बताया कि विद्यालय को लगभग 14 वर्षों से अनुदान नहीं मिला है. हाल ही में जून में विभाग से राशि स्वीकृत हुई है, लेकिन अब तक आवंटित नहीं हुई. कोर्ट द्वारा 2024 में विद्यालय का निलंबन कर दिया गया था, जिसे बाद में जगलाल उच्च विद्यालय से टैग कर चलाया जा रहा है. सेवानिवृत्त पूर्व प्राचार्या ने बताया कि 1986 में उन्होंने विद्यालय ज्वाइन किया था. उस वक्त यहां 300 से अधिक बच्चे पढ़ते थे, लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण अब स्थिति बहुत खराब हो गई है. विद्यालय में एक चपरासी तक नहीं है. बच्चों को पोशाक भी अपने खर्च पर खरीदना पड़ता है. विश्वविद्यालय के कुलपति चाहें तो थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन कोई संज्ञान नहीं लेता है. विभाग के द्वारा जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र लिखा गया है.
प्राचार्य और शिक्षिका ने बताया कि वित्तीय कारणों से विद्यालय की दशा खराब हो रही है. विद्यालय के पांच एकड़ की जमीन कर किसी तरह चलाया जा रहा है. कहा कि अनुदान नियमित रूप से उपलब्ध कराया जाए. बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था बिजली, पानी, सड़क और भवन की मरम्मत के लिए विशेष पैकेज दिया जाए.
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