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bhagalpur news. 20 को होगी मां काली की प्रतिमा स्थापना

सिल्क सिटी भागलपुर में इस बार भी 80 स्थानों में मां काली की पूजा विधि-विधान से होगी

सिल्क सिटी भागलपुर में इस बार भी 80 स्थानों में मां काली की पूजा विधि-विधान से होगी. इसे लेकर तैयारी आखिरी चरण में है. इशाकचक बुढ़िया काली मंदिर में देवी जागरण का आयोजन होगा, परबत्ती बुढ़िया काली परिसर में सांस्कृतिक आयोजन होगा. हड़बड़िया काली, मंदरोजा में प्रसाद का वितरण किया जायेगा. अधिकतर स्थानों पर प्रतिमा का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है. अब प्रतिमा का रंग-रोगन व सजावट का काम शुरू किया गया है.

हड़बड़िया काली पूजा समिति, मंदरोजा की ओर से मंदरोजा चौक-कोतवाली समीप शाही द्वार का निर्माण कराया जा रहा है. निर्माण कार्य जोरों पर है. इशाकचक बुढ़िया काली पूजा समिति के कोषाध्यक्ष दीपक मिश्रा ने बताया कि 20 अक्तूबर को रात्रि में प्रतिमा स्थापित होगी. अध्यक्ष रुद्रनारायण झा, सचिव मोनू मिश्रा आदि के संचालन में 21 को माता का जागरण होगा. इसी दिन पाठा की बलि दी जायेगी. वहीं उर्दू बाजार की मसानी काली पूजा समिति के पदाधिकारी गिरीश भगत ने बताया कि यहां बलि की प्रथा नहीं है. लोग वैष्णव विधि से पूजा करते हैं. यहां केवल पूजा होगी. वही मानिक सरकार चौक के समीप हड़बड़िया काली पूजा समिति के पदाधिकारी हरिशंकर तिवारी उर्फ भूट्टो तिवारी ने बताया कि 20 अक्तूबर को प्रतिमा स्थापित होगी और 21 अक्तूबर को श्रद्धालु माता का दर्शन करेंगे. 22 अक्तूबर को शोभायात्रा से हटकर प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जायेगा. कालीबाड़ी पूजा समिति के महामंत्री विलास बागची ने बताया कि 20 अक्तूबर को प्रतिमा स्थापित की जायेगी. उसी दिन रात्रि में माता को हांडी भोग लगाया जायेगा. वहीं दुर्गाबाड़ी में भी बांग्ला पद्धति से पूजा होगी.

विविध नामों से पुकारी जाती हैं मां काली

परबत्ती, इशाकचक, मोमिनटोला, हबीबपुर में बुढ़िया काली, मंदरोजा में हड़बड़िया काली, सराय- रिकाबगंज में नवयुगी काली, उर्दू बाजार और बूढ़ानाथ में मसानी काली, बरमसिया काली, रतिकाली, जुबली काली, बमकाली आदि नामों से मां को पुकारा जाता है.

परबत्ती पूजा समिति के पदाधिकारी राजा मंडल ने बताया कि परबत्ती की काली मां अति प्राचीन है. इसलिए नाम बुढ़िया काली पड़ा. 20 साल पहले बिजली का ठनका गिरने से बरगद का पेड़ बिखर गया था, लेकिन मान्यता है कि मां की कृपा से बरगद का वृक्ष फिर पुरानी स्थिति में हो गया. लोगों की मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गयी मुराद मां पूरी करती हैं. माता की प्रतिमा खुले आसमान के नीचे विराजती है. दूसरी इशाकचक की बुढ़िया काली भी खुले आसमान के नीचे रहती है. बम काली जोगसर में मां काली की पूजा 200 वर्षों से अधिक समय से होती आ रही है. कतारबद्ध होकर विसर्जन शोभायात्रा की परंपरा शुरू हुई, तो बमकाली सबसे आगे रहती थी. 1960 से परबत्ती की बुढ़िया काली की प्रतिमा सबसे आगे विसर्जन के लिए जाने लगी और बम काली की प्रतिमा सबसे पीछे. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अभय घोष सोनू ने बताया कि यहां की काली की स्थापना बामा खेपा ने की थी. इसलिए बमकाली मां नाम पड़ा.

सोनापट्टी, वारसलीगंज व मुंदीचक में सोना-चांदी से लदेगी मां

सोनापट्टी, वारसलीगंज व मुंदीचक में मां काली सोना-चांदी और हीरा-मोती से लदी होती है. स्वर्णकारों में सोना-चांदी चढ़ाने की परंपरा है. जिला स्वर्णकार संघ के पूर्व सचिव विजय साह ने बताया कि तीनों स्थानों पर स्वर्णकार समाज की ओर से पूजा होती है. मुंदीचक व सोनापट्टी में रत्न चढ़ाने की परंपरा अधिक है. हालांकि, वारसलीगंज में भी कम नहीं है. सोनापट्टी में 200 साल पहले बच्चों ने पिंडी बनाकर मां की पूजा शुरू की. काली स्थान को स्वर्णकारों ने भव्य बनवा दिया गया.

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