भागलपुर व बांका जिले में अभी वन विभाग की ओर से जल पक्षियों की गणना करायी जा रही है. विशेषज्ञों की टीम झीलों, नदियों व जलजमाव वाले क्षेत्रों में जाकर पक्षियों की गिनती कर रहे हैं. यह कार्य आगे भी चलेगा, लेकिन अभी तक यह बात सामने आयी है कि दोनों जिलों में पक्षियों की संख्या में कमी आयी है. इससे विशेषज्ञों में निराशा है. कुछ पक्षियों का दीदार करने के लिए उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. लालसर, दीघौच, गढ़वाल, काॅमन टील, सोभलर, कॉमन पोचार्ड, चैता, कलसिरा, चकवा जैसे प्रवासी पक्षी कभी 500 से 700 के बीच दिखाई देते थे. लेकिन अब इसकी संख्या काफी कम हो चुकी है. पक्षियों के सर्वेक्षण दल में डॉ डीएन चौधरी, राहुल रोहिताश्व, जय कुमार जय, दिव्यांशु कुमार, आनंद कुमार, प्रियंका और निवेदिता शामिल हैं. विशेषज्ञों ने पाया जगतपुर झील : अनायास उग आयी जलकुंभी के पौधों से झील का 50 से 60 प्रतिशत क्षेत्र ढक गया है. इस महत्वपूर्ण झील में जल क्षेत्र सिमट रहा है. घटोरा जलाशय : अभी भी पक्षियों का बसेरा है, पर पहले जैसी स्थिति नहीं है. शिकारियों का हस्तक्षेप है. कुछ युवा पक्षी प्रेमी वहां लोगों के बीच जागरूकता पैदा कर रहे हैं. डिमहा जलाशय : कभी प्रवासी पक्षियों से गुलजार रहता था, हाल के सर्वेक्षण में स्थिति काफी निराशाजनक रही है. हनुमना डैम : फिशिंग और मानव हस्तक्षेप के कारण यहां से पक्षी मुंह मोड़ रहे हैं. ओढ़नी डैम : कुछ हद तक ठीकठाक स्थिति है. अच्छी संख्या में लालसर और बार हेड गीज देखे गये. लेकिन बढ़ते टूरिज्म के कारण पक्षियों की उपस्थिति में खतरा उत्पन्न हो सकता है. –गत कई वर्षों और हाल के पक्षियों के सर्वेक्षण से पता चलता है कि भागलपुर व इसके आसपास के इलाकों में प्रवासी पक्षियों की संख्या में काफी गिरावट आयी है. कुछ पक्षी तो नगण्य हो गये हैं. इसकी मूल वजह जलवायु परिवर्तन और घटते आवास हैं. जलाशयों का सूखना, बारिश की कमी, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप और अनियोजित शहरीकरण ने भी इन पर्यावरण के मित्र पक्षियों को काफी प्रभावित किया है. फरवरी के पहले सप्ताह में पुनः हमलोग इन जलाशयों का फाइनल सर्वेक्षण करेंगे, तब स्थिति और स्पष्ट हो पायेगी. —प्रोफेसर डीएन चौधरी, को-ऑर्डिनेटर, एशियन जल पक्षी गणना, बिहार विशेषज्ञ की सलाह —अगर सुनियोजित तरीके से इस ओढ़नी डैम का उपयोग किया जाता है, तो यहां टूरिज्म भी पनपेगा और इसकी प्राकृतिक सुंदरता और जैवविविधता बनी रहेगी. —जगतपुर झील से अगर जलकुंभियों को साफ कराया जाये, तो इसकी पुरानी स्थिति फिर से बहाल हो सकती है. पक्षी भी आयेंगे और इसका पारिस्थितिक तंत्र भी पुनः बहाल हो जायेगा. क्यों जरूरी है पक्षियों का आना पक्षी हमारे पर्यावरण के महत्वपूर्ण घटक हैं. प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने में सहायक है. ये हानिकारक कीड़ों को खाकर हमारे फसलों की रक्षा करते हैं. इनकी विष्ठा में प्रचूर मात्रा में नाइट्रोजन रहता है, जो खेतों और जलाशयों को उपजाऊ बनाती है.
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