पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाने वाला दान, तर्पण, पिंडदान से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. उक्त बातें साहित्यवाचस्पति आचार्य रामजी मिश्र रंजन ने कही. उन्होंने कहा कि इससे घर परिवार को धन, यश, मान-सम्मान की प्राप्ति होती है. समस्त पितृ भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष के अमावस्या तक धरती पर निवास करते हैं. उनके वंशज उन्हें अन्न-जलादि श्रद्धापूर्वक निवेदित करते हैं, उसे ग्रहण कर वह संतुष्ट हो उन्हें आशीर्वाद देते हैं. जो लोग अपने पितृ को कुछ नहीं निवेदित करते उनके पितृ असंतुष्ट हो अपने वंशजों को कोसते हैं. उन्हे पितृ दोष का शिकार हो जीवन में कई समस्याओं से जूझना पड़ता है. पितृपक्ष में आपके पूर्वज चाहे कृष्ण पक्ष चाहे शुक्ल पक्ष में जिस भी तिथि को मृत्यु को प्राप्त किये हो उनका उक्त तिथि पर तर्पण, दान या उनके निमित्त पिंडदान अवश्य करना चाहिए, जिससे उनकी आत्मा को सद्गति प्राप्त हो. जन्म कुंडली में अगर पितृदोष हो, तो व्यक्ति को अवश्य निवारण के लिए अपने पुरोहित को बुला या खुद से ताम्र पात्र में जल, काला तिल, सफेद चंदन, थोड़ा जौ, अरवा चावल, कुश व सफेद फूल आदि से अपने पूर्वजों के निमित्त जलार्पण या तिल मिश्रित जलार्पण करना चाहिए या पिंडदान करना चाहिए. जिनके घर में पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद न हो उन्हें भी नि:संकोच पितृपक्ष के अमावस्या दिन तर्पण कार्य अवश्य करना चाहिए. तर्पण करने वक्त मन को शांत कर पवित्र हो स्वच्छ वस्त्र पहन कर ऋषि, देव, तर्पण कर पिता- माता, दादा -दादी, नाना- नानी के साथ परिवार के सगे संबंधियों, ससुराल आदि सभी के पितरों के निमित्त जल, तिल, पुष्प अर्पित कर तर्पण करना चाहिए. तर्पण या पिंडदान पितर को श्रद्धा और निष्ठा से दी जाती है. काला तिल का प्रयोग इसमें नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर बुरी आत्माओं को दूर करने के उद्देश्य से किया जाता है, जिससे हमारे पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिले. पितृ आठ से 21 सितंबर तक रहेगा. पूर्णिमा के दिन से ही तर्पण क्रमबद्ध हर तिथिनुसार चलता रहेगा. अमावस्या को जितने पितर ज्ञात या अज्ञात रह गये है, उनका तर्पण उस दिन कर देना बहुत जरूरी है. उसी दिन ब्राह्मण को भगवान विष्णु समझ कर पितरों के निमित्त भोजन कराने से वह संतुष्ट हो वंश की वृद्धि करते हैं. सनातन धर्मी को यह पुनीत कार्य अवश्य करना चाहिए.
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