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Bhagalpur news तांत्रिक विधि से होती है बिहपुर में मां वाम काली की पूजा

मां वाम काली मंदिर में इस वर्ष भी पूजा की तैयारी चल रही है.

बच्चों के साथ खेल-खेल में बादुर तांती मां काली की प्रतिमा बना पूजा कर छागर को कुश से प्रहार कर मां को बलि स्वीकार करने की प्रार्थना की और बलि स्वीकार हो गयी. कुश से प्रहार कर बलि देने का नाटक किया और बकरी दो भागों में बंट गिर गयी. मां वाम काली मंदिर में इस वर्ष भी पूजा की तैयारी चल रही है. तांत्रिक विधि से होने वाली मां वाम काली की पूजा अपनी विशिष्ट परंपरा और रहस्यमय कथा से प्रसिद्ध है. यहां सच्चे मन से मांगी गयी मुराद पूरी होती है. मनोकामना पूर्ण होने पर यहां बलि चढ़ाने या मुंडन करवाने लोग आते हैं. इस स्थल से एक कथा जुड़ी है, जो आज भी गांव में सुनायी जाती है. यह कथा बादुर तांती नामक एक गरीब परिवार की, जिसने अनजाने में एक ऐसी घटना को जन्म दिया, जिससे मां वाम काली की स्थापना हुई. बादुर तांती एक कायस्थ परिवार के यहां बकरी चराता था. मन में भक्ति और बालसुलभ खेल में एक दिन अपने मित्रों के साथ उसने मिट्टी से मां काली की छोटी प्रतिमा बनायी. बच्चों के खेल-खेल में एक छागड़ को पकड़ मां काली से बलि स्वीकार करने की प्रार्थना कर कुश से छागर पर प्रहार करने का नाटक किया. जैसे ही उसने कुश से हल्का प्रहार किया, बकरी दो भागों में विभाजित हो गिर पड़ी. यह दृश्य देख कर सारे बच्चे भय से कांप उठे और वहां से भाग गये. बादुर ने सुबह सारी घटना अपने पिता को बतायी. पिता पहले तो विश्वास नहीं कर पाये, पर जब बादुर ने कहा कि वह सब कुछ फिर से करके दिखा सकता है, तो उन्होंने उसे पुनः वही करने को कहा. जब घटना दोहरायी गयी, तो वही चमत्कार हुआ. बादुर के पिता ने पूरी घटना अपने मालिक को बतायी. मालिक ने भी जिज्ञासावश इस घटना को अपनी आंखों से देखने की बात कही. जब बादुर ने मालिक की उपस्थिति में वही प्रक्रिया दोहरायी, तो फिर वही चमत्कार हुआ. अब केवल बादुर का परिवार ही नहीं, मालिक का परिवार भी स्तब्ध रह गया. उसी रात कायस्थ परिवार के मुखिया को मां काली ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा “डरो मत, मेरी स्थापना करो, मैं तुम सबकी रक्षा करूंगी. अगले दिन एक पेड़ के नीचे मां वाम काली की पिंडी स्थापित की गयी. उसी क्षण से यह स्थान शक्ति उपासना का केंद्र बन गया. कालांतर में यह स्थल बिहपुर के प्रमुख शक्ति पीठों में एक के रूप में प्रसिद्ध है. आज भी वह वृक्ष वहीं मौजूद है, जिसके नीचे मां वाम काली की स्थापना की गयी थी. मां की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है और यहां साज-शृंगार चढ़ाने की मनोकामना सौ वर्षों से ज्यादा समय में पूरी होती आ रही है. हर वर्ष दीपावली पर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है.

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