हरविंद नारायण भारती
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का एक अद्भुत संयोग है कि हम सभी सनातन धर्मावलंबी नये वर्ष का स्वागत तब कर रहे हैं, जब ऋतुराज बसंत यौवन पर है. आम के मंजरों की खुशबू से वायुमंडल व खेतों में सरसों के पीले फूलों को देख मन रोमांचित हो जाता है. हर पेड़ों में नयी पत्तियां, मानों प्रकृति नये वर्ष के स्वागत के लिए सज-धज कर तैयार हो. ऐसे मनोहर वातावरण से प्रफुल्लित मन पवित्रता से भर जाता है. चारों ओर मां भगवती के मंत्रोच्चार से मन अभिभूत हो जाता है. प्रकृति के मूक संदेशों को समझते हुए हमें भी नूतन संकल्पों से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए न केवल पेड़ लगायें, बल्कि जल संरक्षण के साथ-साथ सिंगल यूज प्लास्टिक से भी परहेज करें.स्वयं के आचरण से सामाजिक समरसता का आदर्श करें प्रस्तुत
जाति भेद से त्रस्त समाज को स्वयं के आचरण से सामाजिक समरसता का आदर्श प्रस्तुत करें. केवल सुविधा व अधिकारों की बात न करते हुए अपने द्वारा नागरिक कर्तव्यों का पालन हमारे स्वभाव में समाहित हो जाये. स्व की जागृति-स्वभाषा, वेश, रहन-सहन, खानपान, जीवन मूल्य, अपनी परंपरा आदि के प्रति विशेष जुड़ाव होनी चाहिए. राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना, छोटी-छोटी व्यवस्थाओं का सम्मान करें. यह पंच परिवर्तन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष का मूल मंत्र भी है.ऐसे विश्वव्यापी संगठन के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा को ही हुआ था. इनके द्वारा प्रदत्त अभिनव शाखा पद्धति हिंदू समाज की सुरक्षा व समरसता का सशक्त कवच है. यह शाखा हिंदू समाज का न केवल शक्तिपीठ है, इस राष्ट्र के परम वैभव तक ले जाने का मजबूत माध्यम भी है.
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