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Bhagalpur news होली के रंग, फाग गायन व लोक विधा से दूर हो रही नयी पीढ़ी

होली दो दिन बाद है,लेकिन विकास की दौड़ में हमारी लोक विधा के परिचायक फाग के गीत गुम हो रहे हैं.

शुभंकर, सुलतानगंज होली दो दिन बाद है,लेकिन विकास की दौड़ में हमारी लोक विधा के परिचायक फाग के गीत गुम हो रहे हैं. अत्याधुनिक वाद्य यंत्रों व गीतों के बीच फाग का मस्ती भरे गीत गुम हो गये हैं. प्रभात पड़ताल में पंडित नरेश झा बताते है कि होली के त्योहार पर फाग गायन का विशेष महत्व है. फाग गायन संगीत की एक विशेष कला है, जिसमें रागों के साथ ताल का मेल होता है. जहां गांवों में लंगड़ी व अन्य प्रकार की फाग गायी जाती है. कई युवा को फाग का गीत क्या है, मालूम नहीं है. विकास के साथ अपनी लोक परंपराओं व कलाओं, धरोहरों का गुम होना गंभीर चिंता का विषय है.

होली पर्व पर फाग का है विशेष महत्व

होली पर्व पर फाग का विशेष महत्व है. भवानंद सिंह, शालीग्राम झा, दिनेश कुमार बताते है कि फाग संस्कृति अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. पहले कभी चारों तरफ फगुआरों की टोली फाग गाती निकलती थी. जगह-जगह फाग की महफिलें सजतीं थी. अब कुछ स्थानों पर सिर्फ परंपरा निभायी जा रही है. हालांकि इस विलुप्त होती सांस्कृतिक विरासत को आदिवासी समुदाय आज भी संजोये हैं. लोगों का मानना है कि टीवी व मोबाइल के मनोरंजन संस्कृति के चलते पुरानी परंपराएं दम तोड़ रही है. आज की युवा पीढ़ी पुरानी संस्कृतियों को सीखना नहीं चाहती है. यही कारण है कि होली पर फाग गायन अब धीरे-धीरे खत्म सा होता जा रहा है. शहर के बजाय अब गांवों में भी फाग के गीत लगभग गायब से हो गये हैं. एक-दो जगहों पर मंडली बनाकर फाग का गीत ढोलक के ताल पर गाते सुनाई देते हैं, लेकिन उस तरह नहीं जो आज से कुछ वर्ष पहले हुआ करता था. होली को लेकर सभी जगह तैयारी तेज हो गयी है. होली मिलन समारोह का दौर रमजान के पवित्र माह में इफ्तार पार्टी के साथ आपसी भाईचारा का मिसाल पेश कर रहा है.

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