बिहार की हाॅट सीट में शुमार गोपालपुर विधानसभा में जदयू के लगातार पिछले चार चुनावों में कब्जा होने से जदयू के अभेद्य दुर्ग को फतह करने की कोशिश में महागठबंधन व जनसुराज जुटा है. प्रत्याशियों ने चुनाव प्रचार तेज कर दिया है. अभी तक स्टार प्रचारकों के चुनाव प्रचार नहीं करने से चुनाव प्रचार में अपेक्षित गति नहीं आयी है. गोपालपुर विस में कुल मतदाताओं की संख्या दो लाख 92 हजार के आसपास है. स्वतंत्रता के बाद 1952 के बिहार विस चुनाव में गोपालपुर पीरपैंती विस क्षेत्र के अंतर्गत था. गोपालपुर के पहले विधायक कांग्रेस प्रत्याशी तिलकपुर गांव के स्व सियाराम सिंह थे. 1957 में गोपालपुर विस क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आने के बाद सैदपुर के सीपीआई के स्व काॅ मणिराम सिंह उर्फ गुरुजी चुनाव जीत विधायक बने. 1962 के चुनाव में सिंघिया मकंदपुर की स्व माया देवी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधायक बनीं. 1967 के विस चुनाव में सीपीआई प्रत्याशी के रूप में स्व काॅ मणिराम सिंह उर्फ गुरुजी कांग्रेस प्रत्याशी को परास्त कर विधायक बने. 1969 में बिहार विधानसभा के मध्यावधि चुनाव में हरनाथचक के स्व मदन प्रसाद सिंह ने सीपीआई के स्व मणिराम सिंह को पराजित कर कांग्रेस विधायक बने. 1971 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पुन: स्व मदन प्रसाद सिंह विधायक बने, लेकिन आपातकाल के बाद हुए 1977 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीपीआई के स्व मणिराम सिंह उर्फ गुरुजी अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस लेकर विधायक बनने में सफल हुए. 1980 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी स्व मदन प्रसाद सिंह चुनाव जीत कर विधायक बनने में सफल हुए. 1985 के चुनाव में कांग्रेस के स्व मदन प्रसाद सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे, लेकिन 1990 में पहली बार भाजपा प्रत्याशी स्व ज्ञानेश्वर यादव विधायक बनने में सफल रहे. 1995-2000 के चुनाव में राजद के स्व डाॅ आरके राणा व 2005 में उनके पुत्र अमित राणा विधायक बने. अमित राणा का कार्यकाल काफी छोटा रहा. 2005 से अभी तक जदयू के नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल का कब्जा है. इस चुनाव में जदयू ने अपने विधायक गोपाल मंडल को बेटिकट कर पूर्व सांसद बुलो मंडल को चुनावी दंगल में उतार दिया. निवर्तमान विधायक गोपाल मंडल बागी प्रत्याशी के रूप में चुनावी जंग में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. महागठबंधन से बतौर वीआईपी प्रत्याशी प्रेम सागर उर्फ डबलू यादव व जनसुराज से मंकेश्वर सिंह उर्फ मंटू सिंह चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. देखना दिलचस्प होगा कि जदयू का किला बचा रहेगा या फिर ध्वस्त होगा.
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