Exclusive: ऋषव मिश्रा कृष्णा/ भागलपुर जिले में वर्तमान की खेती-किसानी की स्थिति में तेजी से बदलाव हो रहा है. ऐसे अनाज जो वर्तमान में व्यवसाय की कसौटी पर नहीं टिक पा रहे हैं. वैसे अनाज की खेती का रकबा बड़ी तेजी से घट रहा है. वर्षों से गेहूं को जिले के मुख्य फसल के रूप में देखा जाता रहा है. महज 10 वर्ष पहले तक गेहूं की फसल बाजार में भी अपने प्रतिस्पर्धी अनाज के मुकाबले किसानों को अच्छा मुनाफा कराती थी. लेकिन आज स्थिति बदल गयी है. महज पांच वर्षों में जिले के सैकड़ों एकड़ खेत में गेहूं की जगह मक्के ने ले ली है. अब छोटे किसान उतना ही गेहूं उत्पादन करना चाहते हैं, जिससे उनके घर में एक वर्ष के लिए रोटी की व्यवस्था हो जाये.
मक्का की फसल का आकर्षण क्यों
गेहूं और मक्का मुख्य रूप से रबी फसल है. एक एकड़ में अगर गेहूं की खेती की जाये तो अधिकतम उत्पादन 40 मन का होता है. गेहूं की खेती में अधिक मेहनत की जरूरत होती है और लागत भी कुछ ज्यादा ही आता है. दूसरी तरफ एक एकड़ में अगर मक्के की खेती की जाय तो उत्पादन 80 से सौ मन का होता है. अब बाजार पर नजर डालेंगे तो इस बार कटाई से पहले मक्के की कीमत 2600 रुपये प्रति क्विंटल थी. वर्तमान में 2300 रुपये प्रति क्विंटल है. वर्तमान बाजार 2700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से देखें तो 40 मन गेहूं का मूल्य 43,200 होते हैं. महज 80 मन मक्के का मूल्य 73,600 रुपये होता है. किसान कहते हैं कि मक्के की खेती में उनलोगों को को दो गुना मुनाफा होता है. गेहूं का भंडारण मुश्किल है, तो मक्के का भंडारण आसान है.
पांच वर्ष पहले मक्के ने लगा दी थी लंबी छलांग
गल्ला व्यवसायी संतोष गुप्ता बताते हैं कि पांच वर्ष पहले तक गेहूं की तुलना में मक्के की कीमत आधी थी. लेकिन पोलट्री फार्म, पशु आहार और नमकीन में बड़े पैमाने पर उपयोग से मक्के की डिमांड हाई हो गयी. डिमांड इतनी हाई थी कि उस वर्ष मक्के का मूल्य गेहूं से भी सौ रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा हो गया था. हालांकि बाद भी गिरावट आयी थी, जो मामूली थी.
46,947 हेक्टेयर में होती थी गेहूं की खेती
कृषि विज्ञान केंद्र सबौर के अनुसार जिले में मक्के की खेती 46,947 हेक्टेयर में होती थी और उत्पादन 127388 मैट्रिक टन होता था. वर्तमान में गेहूं का रकबा कहां तक सिमट गया है, इसका अद्यतन सर्वे नहीं किया गया है.
एग्रोनॉमी साइंटिस्ट ने कहा-
सबौर बीएयू के एग्रोनॉमी साइंटिस्ट डॉ. संजय कुमार ने कहा कि मक्के की उत्पादकता ज्यादा है, मुनाफा बढ़ने के कारण किसान इसकी खेती की ओर आकर्षित होते हैं. यही कारण है कि गेहूं की खेती के रकबे में कमी आयी है. दोनों रबी फसल है, इसलिए प्रतिस्पर्धा है.
लाभ के आगे किसानों का हो रहा मोह भंग
- वर्ष 1950 में 18 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 1960 में 35 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 1970 में 115 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 1980 में 220 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 1985 में 250 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 1990 में 284 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 1995 में 450 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2000 में 580 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2005 में 650 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2008 में 1100 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2010 में 1120 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2012 में 1285 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2015 में 1400 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2017 में 1600 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2019 में 1800 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2020 में 2150 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2022 में 2015 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2024 में 2300 रुपये प्रति क्विंटल
- वर्ष 2025 में 3000 रुपये प्रति क्विंटल (फसल कटाई से पहले)
- वर्ष 2025 में 2700 रुपये प्रति क्विंटल (वर्तमान में)