महापर्व छठ सामाजिक एकता व सांस्कृतिक सौहार्द का प्रतीक बन गया है. इस बार भी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने छठ महापर्व में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभायी है. स्थानीय सरबरी सलाम और मो सलामुद्दीन ने बताया कि वह लगभग 20 वर्षों से छठ पर्व में सक्रिय रूप से शामिल होते आ रहे हैं. सलामुद्दीन ने कहा कि वह हर साल व्रतियों को सूप, नारियल, फल और पूजा की वस्तुएं उपलब्ध कराते हैं. उनका कहना है कि सूर्य भगवान सभी के हैं. हमारी आस्था भी उनमें है. छठ पर्व शुद्धता और समर्पण का प्रतीक है. कई मुस्लिम परिवार अपनी मनोकामना पूरी होने पर छठ व्रतियों के माध्यम से सूप चढ़वाते हैं. हम स्वयं पर्व तो नहीं करते, लेकिन व्रत करने वाली महिलाओं को सूप अर्पित करवा कर मनोकामना व्यक्त करते हैं.
घोरघट की अख्तरी खातून के बच्चे की तबीयत ठीक होने पर उन्होंने पिछले वर्ष छठ मइया को सूप चढ़ाया था. फरहा, निखत प्रवीण, सादिया प्रवीण, सोफिया कैशर और मो आहील ने बताया कि छठ पर्व पर उनकी आस्था है. वह हर साल व्रतियों को वस्त्र, फल और पूजा सामग्री उपलब्ध करा कर अपनी साझी श्रद्धा व्यक्त करती हैं.पवित्रता बनाये रखने के लिए मांसाहार से परहेज
छठ पर्व की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए कई मुस्लिम व्यापारी दीपावली के बाद मांस व मुर्गा बेचना बंद कर देते हैं. दुकानदार मो चांद ने बताया कि हमलोग छठ पर्व के दिनों में मुर्गा-मांस नहीं बेचते, ताकि इस पवित्र पर्व की शुद्धता बनी रहे. वह पूजा-सामग्री जैसे सूप, दऊरा, दीपक और फल बेचते हैं. मो सरवर, मो टुन्नू, मो लल्लू, मो मुन्ना, मो महमूद, मो कल्लू पूरे उत्साह से छठ पर्व में भाग लेते हैं और सामग्री बेचते हैं. यह पर्व अब सामूहिक आस्था और आपसी सम्मान का प्रतीक बन चुका है. मो अफरोज आलम ने कहा कि सुलतानगंज की यही पहचान है. यहां धर्म नहीं, भावना जुड़ती है. छठ महापर्व में मुस्लिम समुदाय की सहभागिता गंगा-जमुनी तहजीब की सजीव मिसाल है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

