= इसे भारत में महत्वपूर्ण औषधीय और आर्थिक महत्व प्राप्त है
बलराम यादव, सबौर
बीएयू में आयोजित दो दिवसीय बिहार किसान मेला में काली हल्दी की प्रदर्शनी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना दिखा. मेले में पहुंचने वाले किसान काली हल्दी के बारे में कई तरह के सवाल कर अपनी जिज्ञासा शांत करते दिखे. बीएयू सबौर के वैज्ञानिक डॉ अनिमेष कुमार ने बताया कि काली हल्दी, हल्दी परिवार की एक दुर्लभ और अत्यधिक मूल्यवान प्रजाति है. इसे भारत में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, औषधीय और आर्थिक महत्व प्राप्त है. यह मुख्य रूप से एशिया, विशेषकर भारत के पूर्वोत्तर एवं मध्य क्षेत्र में पाया जाता है. उसकी पहचान हल्के गहरे नीले या काले रंग के प्रकंद से होती है. जो इसे सामान्य पीली हल्दी से अलग बनाती है.
इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा बीएयू
ऐतिहासिक रूप से काली हल्दी की खेती उडीसा, मध्य प्रदेश, असम और हिमालय के तराई क्षेत्रों में की जा रही है. काली हल्दी की औषधीय गुण के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत अधिक मांग है. इसका बाजार मूल्य 300 से लेकर 400 रुपये तक है. यह चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों में दवा, कॉस्मेटिक एवं आयुर्वेदिक उत्पादों के लिए निर्यात की जाती है. बीएयू के क्षेत्राधिकार में इसकी खेती करवायी जा रही है और इसे बढ़ावा देने के लिए किसानों को इसकी खेती के प्रति प्राेत्साहित किया जा रहा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है