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गरीब बच्चों के मसीहा: 33 साल से बिना हथेली जगा रहे शिक्षा की अलख, कुट्टी मील में कटी थी कलाई

Bihar News: दिवाकर मंडल जिनका साल 1997 में कुट्टी मिल में दोनों हाथ कलाई के पास से कट गये थे. उनका जीने का जरिया छिन गया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. कटे हाथों से ही उन्होंने कलम पकड़ कर लिखने की प्रैक्टिस शुरू कर दी और पढ़ाई भी की. पिछले 33 सालों से वह नाथनगर प्रखंड के गनौरा बादरपुर गांव के बच्चों में शिक्षा की अलख जला रहे हैं.

विद्यासागर, भागलपुर: दिवाकर मंडल जिनका साल 1997 में कुट्टी मिल में दोनों हाथ कलाई के पास से कट गये थे. उनका जीने का जरिया छिन गया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. कटे हाथों से ही उन्होंने कलम पकड़ कर लिखने की प्रैक्टिस शुरू कर दी और पढ़ाई भी की. पिछले 33 सालों से वह भागलपुर के नाथनगर प्रखंड के गनौरा बादरपुर गांव के बच्चों में शिक्षा की अलख जला रहे हैं.

साल 1992 से 1200 बच्चों को पढ़ाया

उनके दोनों हाथ केवल कलाई तक हैं, लेकिन कॉपियों व ब्लैक बोर्ड पर वह सुंदर हैंडराइटिंग के साथ लिखते हैं. दिवाकर मंडल हर दिन आधा किलोमीटर साइकिल चला कर शाहजंगी नवटोलिया जाते हैं और वहां वह बच्चों को पढ़ाते हैं. साल 1992 से लेकर आज तक वह पहली से सातवीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ा रहे हैं. दिवाकर मंडल अब तक 1200 बच्चों को पढ़ा चुके हैं. आज उनके पास कई ऐसे विद्यार्थी भी हैं, जिनके परिवार में मंडल तीन पीढ़ियों से शिक्षण कार्य कर रहे हैं.

सरकारी मुकाम तक पहुंची इनकी छात्रा

उनकी पढ़ाई छात्रा भारती कुमारी कश्मीर में सरकारी नौकरी कर रही है. जबकि, कोमल कुमारी मुंगेर में मद्य निषेध विभाग में पदस्थापित हैं. उनके के बच्चे हैं. उनके पास पढ़ाई करने वाले बच्चों के अभिभावक बहुत कम आमदनी वाले अभिभावकों के हैं. उनके पास पढ़ने से बच्चों में एक प्रेरणा जगती है कि जब बगैर हाथ के कोई इतना काम कर लेते हैं, तो वे क्यों नहीं कर सकते. दिवाकर का कहना है कि वह मैट्रिक सेकेंड डिविजन से पास हैं. उनका मूल मकसद पैसा कमाना नहीं, बल्कि हर गरीब बच्चों में शिक्षा के प्रति आकर्षण जगाना है. हाथ कुट्टी मील में कट जाने के बाद तो जीने की कोई चाह ही नहीं रह गई थी.

टीवी सीरियल से मिली प्रेरणा

खराब मानसिक स्थिति देख घर वाले उनकी पहरेदारी करने लगे थे. उन्हें डर था कि कहीं वह आत्महत्या न कर बैठे. घर से निकलना बंद कर दिया गया. ऐसे में उनके पास केवल टीवी देखने का ही काम था. इसी दौरान एक सीरियल में एक बच्चे को पैर से लिखते देखना उन्हें जीवन का रास्ता दिखाया.

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तीन महीने के प्रयास से सीखा लिखना

शुरुआत में कलम से लिख पाना बहुत मुश्किल होता था. कलाइयों से कलम पकड़ने पर वह फिसल जाती थी. तीन महीने के प्रयास के बाद लिखना शुरू कर दिया. इसके बाद फिर कई कहानियां लिखी और फिर गरीब बच्चों के बीच ज्ञान से फैलाने का निर्णय लिया.

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Rani Thakur
Rani Thakur
रानी ठाकुर पत्रकारिता के क्षेत्र में साल 2011 से सक्रिय हैं. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में लाइफस्टाइल के लिए काम कर रहीं हैं.

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