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Bihar Election 2025: अनुराग कश्यप, भागलपुर. इंतजार से भरी आंखें एक पल आसमान की ओर उठती हैं, फिर सड़क पर दूर तक जाती हैं. 53 वर्षीय रामफेर पहलवान बेहद सहजता से बात करने को तैयार हो जाते हैं. कहते हैं, “बेटा दिल्ली से आबी रहलो छै, एक घंटा पहिनै स्टेशन पर उतरलो छै. अबे अइथें होतै. ओकरे इंतजार करी रहलो छिये.” यह बांका जिले के अमरपुर के ठीक पहले डुमरामा का इलाका है. मौसम की ठंडक के बीच राजनीति का तापमान अब भी महसूस किया जा सकता है. रामफेर से जब पूछा गया कि चुनाव का क्या माहौल है, तो उन्होंने कहा, “चुनावो रो कि माहौल रहते? यहां नै ते कोय रोजगार छै आरु नै कोनो काम-धंधा. बेटां दिल्ली में काम करै छै, ते घरो में चूल्हा जलै छै. नेता सिनी रो भरोसें पेट थोड़े भरतै.” उनकी बात में उदासी थी, पर आगे बढ़ने पर माहौल बदलता गया.
Bihar Election 2025: गुलाबी ठंड में छुपी राजनीतिक गरमाहट
बादलों के बीच छुपे सूरज की तरह गुलाबी ठंढ में छुपी राजनीतिक गरमाहट महसूस होती है. अमरपुर विधानसभा सीट से इस बार 13 प्रत्याशी मैदान में हैं, पर मुकाबला तीन के बीच सिमट गया है. जदयू के मंत्री जयंत राज, कांग्रेस के जितेंद्र सिंह, और जनसुराज की सुजाता वैद्य. गांवों और चौपालों में बातचीत के दौरान कहीं जातीय गोलबंदी दिखी, कहीं बदलाव की उम्मीद. मतदाता अब विकास और स्थानीयता का संतुलन मांग रहा है. कई कहते हैं, “कौन रहेगा अमरपुर में और कौन सिर्फ पोस्टर में दिखेगा, यही देखना है.”
वोटों की गोलबंदी और बदले तेवर
सुलतानपुर पंचायत के संजीव ठाकुर कहते हैं, “पांच साल में मंत्री जी इलाका में अइलो छलै कि नै…नीतीश जी के राज में सगरो बिहार के विकास होलो छै. हम्मे सिनी तअ मोदी जी और नीतीशे जी के देखै छियै.” वहीं अमरपुर के सुजीत यादव का कहना है, “हम त लालू जी के जाने छियै. जे लालू जी के साथ, ओकरै भोट देबै.” सुबोध कुमार जोड़ते हैं, “लालू जी ने गरीबो के मुंह में बोली देलकै.” कोठिया गांव के उदयकांत झा कहते हैं, “पूरा गोरगामा पंचायत में जितेंद्र बाबू की ही हवा है. पिछली बार मामूली अंतर से हारे थे, लेकिन क्षेत्र में सक्रिय रहे.” ब्राह्मण बाहुल्य सूरिहारी गांव के चितरंजन झा की राय अलग है, “अब भी अगर जाति देखकर वोट देंगे, तो विकास कैसे होगा? देश में मोदी जी और राज्य में नीतीश जी का कोई विकल्प नहीं है. पूरा इलाका एनडीए के साथ है.”
अमरपुर की राजनीतिक यात्रा
1950-60 के दशक में कांग्रेस का दबदबा था. फिर धीरे-धीरे सत्ता परिवर्तन की बयार चली. अब जातीय समीकरण के साथ विकास, रोजगार और स्थानीयता जैसे मुद्दे भी अहम हो गये हैं. युवा दीपक कुमार कहते हैं “पहले लोग सिर्फ जाति देखते थे, अब काम और कनेक्टिविटी पर बात करते हैं.” अमरपुर को बांका जिले की सबसे सक्रिय सीटों में गिना जाता है. यहां कुशवाहा समाज का प्रभाव है, पर राजपूत, यादव, दलित-महादलित, वैश्य और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका में हैं.
गुड़ मिल, रोजगार और रेल की सिटी का इंतजार
कभी अमरपुर अपनी गुड़ मिल के लिए मशहूर था. अब वह उद्योग इतिहास बन चुका है. अजय प्रसाद कहते हैं, “गुड़ मिल में काम कर हम अपन परिवार चलबैत रही. अब बेटा धनबाद में मजदूरी करै छै.” जिले में सिर्फ एक डिग्री कॉलेज है. महिलाओं के लिए अलग कॉलेज नहीं है. स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी. किसान अब भी वर्षा पर निर्भर हैं. स्थानीय लोगों का कहना है, “अमरपुर के सबसै बड़कै सपना रेल लाइन छियै, मुदा एखन तक अधूरा छियै.” ग्रामीणों के बीच अवैध बालू उत्खनन और शराब की समस्या पर भी नाराजगी है. “बालू के ट्रैक्टर दिन-रात चलै छियै, सड़क टूट रहल छियै, आउ शराब अब घरे-घरे पहुंचल छियै.”
अमरपुर विधानसभा में वोटों की संख्या
- 2,97,478 मतदाताओं की कुल संख्या
- 1,58,037 पुरुष
- 1,39,438 महिलाएं
- 03 थर्ड जेंडर
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