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फिर चातुर्मास में नहीं रुके संत, लौटे

भागलपुर : जैन धर्मावलंबियों का 15 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है. इसे लेकर वार्ड 12 स्थित 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य की पंचकल्याणक भूमि जैन सिद्धक्षेत्र, कबीरपुर को सजाने का काम पूरा हो चुका है. जैन श्रद्धालु पूजन व ध्यान की तैयारी में जुट गये हैं. इसके विपरीत भागलपुरवासियों के लिए दुर्भाग्य है कि दूसरी […]

भागलपुर : जैन धर्मावलंबियों का 15 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है. इसे लेकर वार्ड 12 स्थित 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य की पंचकल्याणक भूमि जैन सिद्धक्षेत्र, कबीरपुर को सजाने का काम पूरा हो चुका है. जैन श्रद्धालु पूजन व ध्यान की तैयारी में जुट गये हैं. इसके विपरीत भागलपुरवासियों के लिए दुर्भाग्य है कि दूसरी बार भी महाराष्ट्र व असम से दो-दो संत ससंघ पहुंचे थे, ताकि चतुर्मास में श्रद्धालुओं को आशीर्वचन का लाभ दे सकें. लेकिन यहां की अव्यवस्था को देखकर लौट गये. नाला निर्माण नहीं होने से जलमाव व दुर्गंध बढ़ गयी है. नगर निगम की ओर से टेंडर प्रक्रिया का मामला न्यायालय में फंस गया.
परेशानी नहीं देख सके मुनिराज : जैन श्रद्धालुओं की मानें तो महाराष्ट्र से पधारे मुनिराज शीतल सागर महाराज व असम से पधारे मुनिराज पुण्य सागर महाराज का कहना था कि यदि यहां रहुंगा तो श्रद्धालु इसी गंदगी के बीच पहुंचेंगे और उनकी परेशानी को देख नहीं सकेंगे. ऐसे में चातुर्मास में ठहरने का मन बदलना पड़ा. दोनों संतों का समूह चातुर्मास शुरू होने से पांच दिन पहले ही झारखंड व बंगाल की ओर प्रस्थान कर गये. मुनिराज पुण्य सागर महाराज अपने आठ मुनिराज व तीन साध्वी के साथ गिरीडीह सम्मेद शिखर की ओर प्रस्थान कर गये, तो शीतल सागर बंगाल की ओर प्रस्थान कर गये.
चार माह तक होता है उत्सव: चातुर्मास जैन श्रद्धालुओं के लिए पावन होता है. इस पावन पर्व का समापन 14 नवंबर को होगा.
जैन श्रद्धालु तीन से 13 सितंबर तक दशलक्षण महापर्व का आयोजन चातुर्मास के अंतर्गत करते हैं. 13 सितंबर को भगवान वासुपूज्य निर्वाण महोत्सव का आयोजन होगा.

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