बरौनी. अभेदानंद आश्रम आर्य समाज मंदिर बारो में श्राद्ध एवं तर्पण विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का प्रारंभ गोविंद आर्य ने यज्ञ हवन से किया. सभा को संबोधित करते हुए संतोष आर्य ने कहा श्राद्ध और तर्पण का अर्थ जीवितों के प्रति श्रद्धा और सेवा है, न कि मृत पितरों के लिए पिंडदान या अन्य पारंपरिक अनुष्ठान. महर्षि दयानंद सरस्वती के अनुसार ये कर्मकांड मूलतः वेद विरुद्ध और मनगढ़ंत हैं. वेद के अनुसार जीवित माता-पिता, गुरुजनों और अन्य सेवा योग्यजनों के प्रति श्रद्धा एवं सेवा को ही श्राद्ध और तर्पण मानता है. श्राद्ध का अर्थ मृत व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि अपने माता-पिता, गुरुजनों और अन्य श्रेष्ठजनों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना और उनकी सेवा करना है. जिन्होंने हमें शिक्षा और सभी संसाधन प्रदान किए हैं. सभा को संबोधित करते हुए आचार्य अरुण प्रकाश आर्य ने कहा व्यक्ति के कर्मों का महत्व है. यह माना जाता है कि जीव और शरीर के संयोग से ही संबंध बनते हैं. न कि मृत्यु के बाद भी संबंध बने रहते हैं. आर्य समाज वेद विरुद्ध कर्मकांडों, पितृपूजा और फलित ज्योतिष आदि का खंडन करता है. वैदिक धर्म गर्भधारण से लेकर अंतिम संस्कार तक 16 संस्कार होते हैं. इस में कहीं भी मृतक श्रद्धा या तर्पण का उल्लेख नहीं किया गया. मृत्यु के बाद व्यक्ति को अपने कर्म के अनुसार शरीर को धारण करता है. आर्य समाज मृत व्यक्ति को भोजन पहुंचाने या मोक्ष दिलाने जैसे मान्यताओं का विरोध करता है, क्योंकि आत्मा किसी भी भौतिक भोजन को ग्रहण नहीं कर सकती. माता-पिता, आचार्य एवं अन्य जीवित गुरुजन की सेवा करके ही हम पितृ दोष से बच सकते. इस मौके पर अग्निवेश आर्य, आचार्य अरुण प्रकाश आर्य, सुधीर आर्य, राजेंद्र आर्य, नरेश आर्य, सोनू, शशि शेखर, कैलाश आर्य सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे.
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