बांका. विधानसभा चुनाव का संघर्ष अब निर्णायक मोड़ पर आ रहा है. प्रचार-प्रसार का दौर चरम पर पहुंच गया है. बड़े-बड़े नेताओं की जनसभाएं भी शुरु हो गयी है. प्रचार के साथ वोट प्रबंधन भी इस बार जल्दी शुरु हो गयी है. 11 नवंबर को वोटिंग है. दिन बीतने के साथ नेताजी की व्यवस्ता बढ़ती जा रही है. प्रचार-प्रसार में उनके पसीने छूट रहे हैं. काफी कम दिनों में प्रत्येक इलाके तक पहुंचना है. अकेले दम पर प्रचार करना आसान नहीं है. कई क्षेत्र में प्रत्याशी के रिश्तेदार तक पहुंच रहे हैं. यहां लड़ाई कई विधानसभा में सीधी आमने-सामने की हो गयी है. कुछेक विधानसभा में त्रिकोणी मुकाबला का मैदान तैयार हो रहा है. बहरहाल, चुनाव कई समीकरण के हिसाब से लड़ा जाता है. अभी प्रमुख प्रत्याशियों की नजर पंचायत प्रतिनिधियों टिकी हुई है. सभी पंचायत प्रतिनिधियों को अपने पाले में लाकर पंचायत के वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने जुगत बैठा रहे हैं. पंचायत प्रतिनिधियों की मीटिंग भी कई जगहों पर हो रही है. यहां प्रत्याशी पहुंचकर अपनी बात रख रहे हैं.
रुठे नेताओं पर भी नजर
पार्टी के अंदर खाने भी कई रुठे नेता होते हैं, जो भीतरघात के ताक में रहते हैं. मौजूदा समय में अमूमन सभी पार्टियों में ऐसे भीतरघात वाले नेता भी हैं. एक तो बागी हैं, जो खुलेआम मैदान में चुनौती दे रहे हैं. दूसरी ओर दल के अंदर रहकर भी लोग भीतरघात करने के इरादे से काम करते हैं. हालांकि, जनता के रुझान के बाद ऐसे नेताओं का प्रभाव कभी-कभी नहीं चलता है. परंतु, उनका प्रभाव यदि रहता है तो परिणाम भी प्रभावित हो जाते हैं. लिहाजा, प्रमुख उम्मीदवारों को ऐसे भीतरघात नेताओं पर भी नजर रखनी पड़ती है. चूंकि, अभी से भीतरघात और छल-प्रपंच शुरु होने की चर्चा विभिन्न दलों में शुरु हो गयी है. खासकर वैसे नेता पर नजर रखनी शुरु हो गयी है, जिन्हें किसी कारणवश टिकट नहीं मिला और वह बेटिकट हो गये.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

