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Bihar Election History: गिद्धौर राजघराने के प्रताप सिंह बने थे बांका के सांसद, जनता कहती थी राजा साहेब

Bihar election history: बिहार में आजादी के बाद रजवारों का राजनीति में बहुत बेहतर प्रदर्शन नहीं रहा. इसके बावजूद गिद्धौर राजघराने के प्रताप सिंह दो-दो बार बांका के सांसद चुने गये., जनता कहती थी राजा साहेब कह कर बुलाती थी.

Bihar election history: बांका. बांका लोकसभा क्षेत्र में बाहरी नेताओं का दखल प्रारंभ से ही रहा है. समय-समय पर यह मुद्दा तूल भी पकड़ता है, पर अधिक समय तक यह प्रभावी नहीं रह पाता. बहरहाल, बांका की सियासी जमीन को राजघराने से आये नेताओं ने भी अपनी कर्म भूमि बनायी है. यहां से दो बार लगातार सांसद निर्वाचित हुए प्रताप सिंह जमुई के गिद्धौर देसी रियासत के वंशज थे. देश आजाद होने के पूर्व इनके पूर्वज राजा हुआ करते थे. भारत जब आजाद हो गया, तो सभी देसी रियासतें देश का अभिन्न हिस्सा बन गयीं और राजतंत्र जैसी व्यवस्थाएं समाप्त कर दी गयीं. राजतंत्र या जमींदारी जाने के बाद राजघरानों ने सियासत में अपने पांव जमा दिये.

दो बार जनता ने चुनकर भेजा दिल्ली

प्रताप सिंह भी राजघराने से ही निकले हुए नेता थे. उन्होंने जनता दल के टिकट पर बांका लोकसभा क्षेत्र से दो बार 1989 व 1991 में हुए चुनाव में भारी मतों से जीत हासिल की थी. यहां की जनता और अधिकतर नेता उन्हें राजा साहेब के नाम से ही पुकारते थे. कटोरिया के पूर्व विधायक रहे भोला यादव बताते हैं कि प्रताप सिंह को क्षेत्र में राजा साहेब के नाम से ही पुकारा जाता था. भोला यादव जनता दल के टिकट पर ही कटोरिया से विधायक बने थे. प्रताप सिंह से उनका मधुर संबंध रहा था. भोला यादव बताते हैं कि प्रताप सिंह काफी सीधे-सादे इंसान थे. प्रताप सिंह चुनाव लड़ने के प्रति इच्छुक नहीं थे. पर, अपने समधी व देश के प्रधानमंत्री रहे वीपी सिंह के दबाव में उन्होंने संसदीय चुनाव लड़ा था.

प्रताप सिंह ने मनोरमा सिंह को किया था पराजित

प्रताप सिंह जनता दल से पहली बार 1989 में बांका लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे. उन्हें तीन लाख 69 हजार 771 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी मनोरमा सिंह को 53156 मत प्राप्त हुए थे. इस चुनाव में चार प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. शेष प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी. इसके बाद 1991 में भी जनता दल के टिकट पर वे दोबार चुनाव लड़े और फिर मनोरमा सिंह को भारी मतों से पराजित कर चुनाव जीत गये. प्रताप सिंह को इस चुनाव में दो लाख 41 हजार 797 मत प्राप्त हुए थे, जबकि मनोरमा सिंह को एक लाख 31 हजार 410 मत प्राप्त हुए थे.

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दिग्विजय सिंह ने 1991 के चुनाव में बांका का किया था रुख

मनोरमा सिंह चंद्रशेखर सिंह की पत्नी थीं. दोनों पति-पत्नी बांका से सांसद निर्वाचित हो चुके थे. इनका भी मूल घर जमुई जिला ही था. बांका में चंद्रशेखर सिंह का सियासी कद काफी बड़ा था. खैर, 1991 के चुनाव में ही जमुई से एक तीसरे नेता का पदार्पण हुआ, जो बाद में यहां लोकप्रिय हो गये. उनका नाम दिग्विजय सिंह था. दिग्विजय सिंह 1991 के चुनाव में झारखंड पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़े. इन्हें महज 31332 वोट प्राप्त हुए थे, लेकिन इस चुनाव से दिग्विजय सिंह ने बांका में सियासी लकीर खींच दी थी. इसके सहारे उन्होंने भविष्य में बांका को अपने लिए मुफीद बना लिया. एक रोचक बात यह भी कि दिग्विजय सिंह का भी गिद्धौर राजघराने से ही संबंध था. कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह के पिता गिद्धौर स्टेट के मैनेजर हुआ करते थे. दिग्विजय सिंह का भी पैतृक घर जमुई जिला ही था.

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