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सरहद पार कर प्रवासी पक्षियों का झुंड पहुंचा बांका, पक्षियों की चहचहाहट से डैम गुलजार

सरहद पार कर प्रवासी पक्षियों का झुंड पहुंचा बांका, पक्षियों की चहचहाहट से डैम गुलजार

प्रवासी पक्षियों के कलरव से गुंजीत हुआ ओढ़नी डैम.

एशियाई वॉटर बर्ड प्री – सेंसस 25-26 के दौरान कई दुर्लभ प्रवासी पंछी नज़र आये, पक्षी प्रेमियों में उत्साह की लहर.

सुभाष वैद्य, बांका

जिले का जलाशय इको-टूरिज्म के साथ जैव विविधता का भी केंद्र बनता जा रहा है. विशेषकर सर्द के मौसम में पर्यटक और पक्षियों के लिए यह बेहद खास महत्व रखता है. साथ ही इस मौसम में प्रवासी पक्षियों के लिए बांका की वादियां, डैम और जलाशय काफी अनुकूल माना जाता है. प्रति वर्ष की भांति इस बार भी प्रवासी पक्षियों का बांका उत्तम बसेरा बन गया है. ओढ़नी, चांदन, बदुआ आदि जलाशय दुर्लभ और आकर्षक पक्षियों से गुलजार हो गया है. इस वातावरण में सुदूर साइबेरिया, सेंट्रल एशिया तथा यूरोप के कुछ इलाकों में, जहां तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है तथा पानी के जम जाने से पक्षियों को खाने की गहरी समस्या हो जाती है, ऐसी स्थिति में लाखों की तादाद में हिमालय को पार कर प्रवासी पक्षी भारत आते हैं तथा अक्टूबर से लेकर मार्च के अंत तक हमारे देश को अपना अस्थायी बसेरा बना लेते हैं. बांका का क्षेत्र, इनके लिए काफी उपयोगी साबित होता है. इन पक्षियों की प्रवास यात्राएं तथा संख्या का वैज्ञानिक अध्ययन के लिए हर साल बिहार सरकार के वन विभाग द्वारा गणना करायी जाती है, जिसमें पक्षी विशेषज्ञ के अलावा शोधार्थी भी शामिल होते हैं. रविवार को एशियाई वाटरबर्ड सेंसस के को-ऑर्डिनेटर राहुल रोहिताशव के नेतृत्व में पक्षी प्रेमियों के दल ने बांका स्थित ओढ़नी डैम तथा बेलहर स्थित हनुमना डैम का प्री-काउंट किया. राहुल ने बताया की हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी दिसंबर के महीने में ओढ़नी डैम में एशियाई जलपक्षी गणना के प्री-काउंट में प्रवासी पक्षियों के अलावा स्थानीय पक्षियों की भी अच्छी संख्या देखने को मिली. उनके अनुसार इस बार प्रवासी पक्षियों में हिमालय को पार कर आये राजहंसों या बार हेडड गुज के अलावा 300 लालसर या रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, 60 कॉमन पोचार्ड, 50 गडवाल, 100 यूराशियाई वीजन, 200 से भी ज्यादा लेसर व्हिस्टलिंग डक, नॉरदेन पिंटेल डक, फेरुगिनस डक तथा 40 ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब, वाइट ब्राउड वैगटेल, सिट्रिन वैगटेल, वाइट वैगटेल, मार्श सैंडपाइपर, कॉमन सैंडपाइपर, लिटिल रिंगड प्लॉवर, ब्राउन हेडड गल तथा ब्लैक हेडड गल इत्यादि पक्षी पाये गये. इस टीम में राहुल रोहिताशव के अलावा रिसर्च स्कॉलर जय कुमार, आनंद कुमार, प्रियंका कुमारी की भूमिका भी काफी सराहनीय रही. इसके अलावा वन विभाग से अभिषेक कुमार, अभिजीत कुमार, सन्नी कुमार तथा मोहम्मद अब्दुल सलाम ने भी इस गणना में अपना अमूल्य योगदान दिया.

ये पक्षी भी आए नजर

स्थानीय पक्षियों में पाइड किंगफिशर, वाइट थ्रोटेड किंगफिशर, गोल्डन ओरिओल, ब्लैक हेडड ओरिओल, टेलर बर्ड, पर्पल सनबर्ड, छोटा पनकौवा, बड़ा पनकौवा, रेड नेप्ड आईबीस, वाइट आईबीस, कॉमन टर्न, ब्लैक काईट, शिकरा, एशियाई ओपनबिल स्टॉर्क, ग्रे हेरोन, लिटिल एग्रेट, ग्रीन बी ईटर, ब्लैक ड्रोनगो, नीलकंठ, रेड वेटैल्ड लैपविंग इत्यादि पक्षी भी काफी संख्या में दिखे.

चांदन डैम में पानी की कमी

चांदन डैम में पक्षियों के अनुकूल पानी की मात्रा उपलब्ध नहीं है. पानी कम होने के कारण पक्षी कम उतर रहे हैं. वहीं बेलहर स्थित हनुमना डैम में प्रवासी पक्षी नदारद थे. एक बरगद के पेड़ पर 50 से भी ज्यादा हरियल या येलो फूटेड ग्रीन पिजन दिखायी दिया. राहुल ने बताया की हनुमना डैम में प्रवासी पक्षियों का नहीं दिखना काफी चिंताजनक बात है.

ओढ़नी डैम पक्षी प्रेमियों का वर्ल्ड हैरिटेज

ओढ़नी डैम में मंगोलिया, सेंट्रल एशिया, उत्तरी यूरोप, रूस के साइबेरियन प्रदेश, कजाकिस्तान आदि देश शामिल है. इन देशों में इस समय तापमान कम होकर माइनस में चले जाते हैं. ऐसे में यह पक्षी भारत की ओर अपना रुख कर लेते हैं, जो दिसंबर से अप्रैल तक भारत में ठहर कर पुनः अपने स्वदेश को लौट जाते हैं. खास बात यह है कि यह साइबेरियन पक्षी, यहां प्रजनन नहीं करते हैं.

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