बौंसी : मंदार पर्वत एक ओर जहां भगवान मधुसूदन और समुंद्र मंथन की कथाओं से जानी जाती है वहीं दूसरी ओर अलग-अलग काल खंडों में घटित होने वाली महत्वपूर्ण क्रिया कलापों से भी यह अपनी अलग पहचान बनाता है. पुराणों व ऐतिहासिक दस्तावेजों में यह वर्णित है कि जगतनंदनी सीता मैया ने प्रभु श्रीराम के साथ मंदार प्रवास किया था एवं मंदार स्थित चक्रावर्त कुंड में सूर्योपासना के लिए षष्ठि का व्रत किया था. कालांतर में इस कुंड को सीता कुंड के नाम से जाना जाने लगा.
आज भी जमालपुर और मुंगेर क्षेत्र में इनकी आस्था के रूप में सीता चरण की पूजा की जाती है. बाल्मिकी द्वारा रचित अद्भुत एवं आनंद रामायण में मंदार की चर्चा भास्कर की कृपा से आलोकित तीर्थ के रुप में किया गया है. भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार फ्रांसिस बुकनन ने भी मंदार तीर्थ को प्रभु राम के साथ जोड़कर किया है. इस बात से और भी प्रमाणित होती है कि भारी संख्या में वनवासी बंधु मंदार आकर अपने इष्ट भगवान राम के चरण चिह्न पर वनफूल एवं अक्षत चढ़ाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं. यह चरण चिह्न पर्वत शिखर स्थित राम झरोखा के पिंड पर अंकित है.
लोकमान्यता है कि इसी स्थल से श्रीराम सीता ने मंदार के विहंगम दृष्य का अवलोकन किया था. संथाली गीतों में भी मंदार पर श्रीराम सीता के आगमन को पद्यांकित किया गया है. इन गीतों में सीता के बहन के रूप में कापरी शब्द का प्रयोग किया गया है और सूर्योपासना पर सखियों के द्वारा वनफूल तोड़ने का जिक्र किया गया है. वर्तमान में इसी स्थल पर सीता वाटिका मौजूद है. तीन दिनों तक चलने वाले सूर्योपासन का महत्वपूर्ण पर्व मंदारवासियों के लिए मनवांछित फल देने वाला है.
इसी सीता कुंड के जल का संबंध पाद स्थित पापहरणी सरोवर से हैं. इन्हीं आस्था के साथ हजारों की संख्या में श्रद्धालु कद्दु भात के एक दिन पूर्व पापहरणी सरोवर में पवित्र स्नान कर अपना व्रत का आरंभ करते हैं. इसके अलावा भी मंदार क्षेत्र होकर बहने वाली चीर, अगरा और सुखनियां नदियों के तट पर बसने वाले ग्रामीण छठ व्रत करते हैं. 33 करोड़ देवी देवताओं से संरक्षित मंदार स्थित सीता कुंड एवं पापहरणी सरोवर में छठ का व्रत करने से सारी देव शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
पद्मश्री चित्तु टुडू ने मंदार को आदिवासियों का सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल के रुप में अपने किताब में बताया है. जिनकी चर्चा करते हुए कहते हैं कि आदिवासियों ने अपने इष्टदेव के रूप में उनके पारंपरिक अस्त्र धनुषवान धारण करने वाले प्रभु राम को स्वीकारा है और अपने संपूर्ण वनवास काल में आदिवासियों का सहयोग प्राप्त किया था.