थम्हा दिया जाता है रेफर का पुर्जा
औरंगाबाद ग्रामीण. एक तरफ सरकार ने सदर अस्पताल को जिला अस्पताल से मॉडल अस्पताल का दर्जा देते हुए करोड़ों रुपये खर्च कर 300 बेड का अस्पताल बनाने का काम शुरू किया है. यही नहीं प्रगति यात्रा के दौरान सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा सदर अस्पताल को मॉडल अस्पताल के रूप में विकसित कर अस्पताल का उद्घाटन किया गया. इसके बाद भी अस्पताल की चिकित्सीय व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि सदर अस्पताल में मिलने वाली मरीजों की सुविधा ना के बराबर है. ऐसे में माना जाये की सदर अस्पताल खुद ऑक्सीजन पर चल रहा है. वर्तमान में सदर अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था में जो राजनीति हो रही है, वैसे में गरीब तबके के लोगों का इलाज होना संभव नहीं दिखाई देता है. गंभीर रूप से बीमारी होने पर जो भी मरीज सदर अस्पताल में आता हैं, उसे रेफर का पुर्जा थम्हा दिया जाता है और वह निराश लौट जाता हैं. सिविल सर्जन द्वारा दावा किया गया था कि उद्घाटन के बाद सभी नवनिर्मित भवन में लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध कराते हुए चिकित्सकों के हवाले कर दिया जायेगा. उद्घाटन के कई महीने बीत जाने के बाद भी सुविधा उपलब्ध नहीं हुई और नही डॉक्टर को समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराया गया. यहां तक की नवनिर्मित भवन को निर्माणाधीन ठेकेदार द्वारा अस्पताल प्रबंध को सुपुर्द भी नहीं किया गया है.नियुक्ति के बाद प्रतिनियुक्ति पर भी ड्यूटी नहीं कर रहे डॉक्टर
एक तरफ सरकार द्वारा अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि किसी भी स्थिति में चिकित्सक व चिकित्सा कर्मियों की प्रतिनियुक्ति नहीं की जाये और जो पहले से किया गया है उसे रद्द करते हुए पूर्ण स्थान पर वापस भेजना के लिए सुनिश्चित करें. ऐसे में कई वैसे भी चिकित्सक सदर अस्पताल में है जो प्रतिनियुक्ति होने के बाद भी अपने निर्धारित समय व तिथि के अनुसार ड्यूटी नहीं करते हैं, बल्कि निजी क्लिनिक चलाने में व्यस्त रहते हैं. एक चिकित्सा पदाधिकारी ने बताया कि जो डॉक्टर नियुक्ति के बजाय प्रतिनियुक्ति पर है वे सदर अस्पताल में ड्यूटी करना नहीं चाहते हैं, बल्कि निजी क्लीनिक चलाने में व्यस्त रहते हैं. इसका मुख्य कारण है कि बिहार सरकार द्वारा उन्हें निर्धारित सेवा शुल्क के आधार पर मानदेय का भुगतान कर दिया जाता है. इसके बावजूद में डॉक्टरों को संतुष्टि नही है. वे हर रोज अपने निजी क्लीनिक के माध्यम से 40 से 50 हजार की आमदनी प्रतिदिन करते हैं. ऐसे में उन्हें सरकारी अस्पताल में ड्यूटी करने से उन्हें क्या फायदा हैं.क्या कहता है विभागीय नियम
स्वास्थ्य विभाग के वरीय अधिकारियों की माने तो जिस स्थान पर जिस चिकित्सा पदाधिकारी व कर्मियों की नियुक्ति हुई है. अगर उसके आगे उन्हें किसी जगह पर प्रतिनियुक्ति किया गया है और वे ड्यूटी करने में अक्षम साबित होते हैं तो उन्हें नियुक्ति स्थल के नोडल पदाधिकारी के समक्ष इस्तीफा से संबंधित प्रमाण पत्र देना होता है. वहां से संबंधित नोडल पदाधिकारी द्वारा सिविल सर्जन को अग्रसारित किया जाता है और उनके द्वारा अंतिम निर्णय लेने का प्रावधान है, लेकिन डॉक्टर यह नहीं करते हुए बल्कि नोडल पदाधिकारी के बजाय जिस जगह पर प्रतिनियुक्ति पर ड्यूटी करते हैं. ना तो वहां के नोडल पदाधिकारी को सूचना देते हैं और नहीं नियुक्ति के जगह अनुदान पदाधिकारी को त्यागपत्र से संबंधित आवेदन दे देते हैं. वैसे में समस्या उत्पन्न हो जाती है जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है.कई विभागों के नही हैं डॉक्टर
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सदर अस्पताल में कई विभागों के डॉक्टर नही है. मुख्य रूप से आंख, कान, नाक, गला, हड्डी, चर्मरोग आदि विभागों के डॉक्टर नही है. जब इससे संबंधित मरीज सदर अस्पताल में इलाज कराने आते हैं जनरल फिजिशियन डॉक्टर हल्की फुल्की दवाइयां लिख देते हैं. जब विभाग से इस मामले में बातचीत की जाती है तो सीधा हाथ खड़ा कर देते है और कहते है कि डॉक्टरों की कमी है. इससे साफ प्रतीत होता है कि स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था चरमराई हुई है. अगर सदर अस्पताल में सभी विभाग के डॉक्टरों की व्यवस्था करा दी जाये तो मरीजो को निजी क्लिनिकों का दरवाजा खटखटाना नही पड़ेगा. यहां व्यवस्था बहाल न होने के कारण निजी क्लीनिकों के डॉक्टर चांदी काट रहे हैं.क्या कहते हैं डीएस
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि व्यवस्था परिपूर्ण हो इसका ध्यान रखा जा रहा है. सभी समस्याओं से संबंधित विभाग को लेटर भी लिखा जा चुका है. जल्द ही डॉक्टरों की बहाल किये जाने का आश्वासन मिला है. मरीज को किसी प्रकार की कोई समस्या ना हो इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम पूरी तरह प्रतिबद्ध है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है