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वितरहित शिक्षकेतर कर्मचारियों का आंदोलन जारी, मांगों लेकर अड़े

महिला कॉलेज के शिक्षको व कर्मियों ने हाथ में काली पट्टी बांधकर वित्त रहित नीतियों का जताया विरोध

महिला कॉलेज के शिक्षको व कर्मियों ने हाथ में काली पट्टी बांधकर वित्त रहित नीतियों का जताया विरोध

कुटुंबा. वित्त रहित अनुदानित शिक्षण संस्थान के कर्मचारी अपने विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन जारी रखे हैं. वित्त रहित शिक्षकेतर कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा के आह्वान पर सातवें दिन भी कर्मी अड़े रहे. प्रदेश समेत जिले के अधिकांश वित्त रहित संस्थानों में हडताल को लेकर सभी तरह का कार्य ठप पड़ गया है. बुधवार को मोर्चा के आह्वान पर महिला कॉलेज मुड़िला अंबा में भी सभी कर्मचारियों ने प्राचार्य दिनेश कुमार सिंह के नेतृत्व में हाथ में काली पट्टी बांधकर सरकार के वित्त रहित नीतियों का विरोध जताया. इस दौरान जमकर नारे लगाये व राज्य सरकार से विभिन्न मांगों को पूरा करने की मांग की. प्राचार्य ने बताया कि मगध प्रक्षेत्र के कोऑर्डिनेटर प्रो विजय चौबे व अनुदान नहीं वेतनमान फोरम के जिला संयोजक प्रो श्याम प्रकाश पाठक की अगुवाई में वित्त रहित शिक्षक संस्थान के शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मी पटना पहुंचकर धरना प्रदर्शन जारी रखे है. उन्होंने बताया कि विगत कई वर्षों से हम सभी शिक्षक व कर्मचारी निःशुल्क सेवा दे रहे है. एक ऐसा भी समय था कि प्रखंड में सरकारी संस्थान नहीं थे. साधारण परिवार के बच्चे मैट्रिक पास करने के बाद बड़े शहरों में जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने से सहमते थे. विषम परिस्थिति में भी कर्मी बेहतर शैक्षणिक गतिविधि को बेहतर बनाने में जुटे रहे है. उनकी मांगो में अनुदान के बदले सम्मानजनक वेतन, उम्र सीमा में बढ़ोतरी, जांच के नाम पर प्रस्वीकृति निलंबन जैसी कार्रवाई को वापस लेते हुए सभी शिक्षण संस्थानों को पूर्व की भांति प्रस्वीकृति बहाल करने, कार्यरत कर्मचारियों की सेवा स्थायीकरण आदि शामिल है.

अभी भी सरकारी सुविधा से वंचित हैं वित्त रहित संस्थान के कर्मी

प्राध्यापकों ने बताया कि राज्य सरकार ने कर्मचारियों एवं अनुबंध पर कार्य करने वाले कर्मियों के लिए अनेकों सुविधाएं बढ़ाई हैं. आज भी वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत संचालित संस्थानों के शिक्षक-शिक्षकेतर कर्मचारी अछूते रह गये हैं. पिछले 45 वर्षों से ऐसे संस्थानों में कार्यरत कर्मी बिना मानदेय के शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर राज्य की शिक्षा नीति को बेहतर बनाने और बिहार के युवाओं को शिक्षित करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे थे. वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य से वित्त रहित शिक्षा नीति को समाप्त करते हुए सभी शिक्षण संस्थानों को वित्त अनुदानित करने की घोषणा की और छात्र उत्तीर्णता के आधार पर अनुदान की व्यवस्था करते हुए अनुदान की राशि से कार्यरत कर्मियों को वेतन भुगतान की नियम बनाया. अभी भी लगभग आठ सालों का अनुदान लंबित है. 2008 से आज 2025 के बीच राज्य कर्मचारियों को वेतन भुगतान में अप्रत्याशित वृद्धि की गई. अनुदान के बदले नियत वेतन की घोषणा, सभी कर्मचारियों को उम्र सीमा में तत्काल बढ़ोतरी करने की मांग की गई. मौके पर प्रो ब्रजनंदन पाठक, प्रो सवीता सिंह, प्रो रामाधार सिंह, प्रो सुनील कुमार सिंह, प्रो दिलीप कुमार, प्रो संजय कुमार सिंह, प्रोफेसर विश्वनाथ पांडेय के साथ-साथ प्रधान सहायक किरण कुमारी, लिपिक प्रभा कुमारी, शिवनाथ पांडेय, मुकेश पांडेय, रवींद्र कुमार पांडेय, अभय यादव, विनोद पांडेय व सुमित्रा कुंवर शामिल थे.

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