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शेरघाटी में मतदाताओं की गोलबंदी तेज

बिहार विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण

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जीत की जंग में प्रत्याशी उतरे आखिरी दांव पर

प्रतिनिधि, शेरघाटी. विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण के मतदान में अब गिनती के चार दिन बाकी हैं. जैसे-जैसे तारीख करीब आ रही है, वैसे-वैसे शेरघाटी का राजनीतिक तापमान चरम पर पहुंच गया है. प्रत्याशी अब हर वह पत्ता खेल रहे हैं, जिससे मतदाताओं की गोलबंदी अपने पक्ष में की जा सके. सुबह से देर रात तक डोर-टू-डोर संपर्क, नुक्कड़ सभाएं और रोड शो के जरिये उम्मीदवार जनसमर्थन जुटाने में लगे हैं. इस बीच गांवों और कस्बों में मतदाता भी अब चुपचाप अपना मूड बना रहे हैं. लोगों की बातचीत से साफ है कि इस बार शेरघाटी का चुनाव पूरी तरह समीकरणों और रणनीति पर टिका हुआ है. जातीय और वर्गीय आधार के साथ अब युवा व विकास के मुद्दे भी प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं. महावीर प्रसाद कहते हैं कि महागठबंधन का समीकरण परंपरागत रूप से मजबूत रहा है. यादव-मुस्लिम वोट बैंक अभी भी निर्णायक स्थिति में है. अगर, इन मतदाताओं का झुकाव एकतरफा हुआ, तो जीत का रास्ता आसान हो सकता है. लेकिन, हाल में स्थानीय राजद विधायक पति व प्रत्याशी के वायरल एक वीडियो ने पार्टी के अंदर हलचल मचा दी है, जिसका असर मतों के बंटवारे पर पड़ सकता है. शेरघाटी शहर के व्यवसायी का मानना है कि इस बार वैश्य और व्यापारी वर्ग का एक हिस्सा भी जनसुराज और महागठबंधन की ओर झुकता दिख रहा है. वे कहते हैं कि “जनता अब जाति से ज्यादा स्थानीय विकास और सुरक्षा को लेकर वोट करेगी. हालांकि, निर्दलीय उम्मीदवारों की सक्रियता ने परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की चुनौती खड़ी कर दी है. गोला बाजार के रहने वाले अनिरुद्ध विश्वकर्मा, सुशील कुमार सिंह का कहना है कि युवाओं में “परिवर्तन की चाह” सबसे बड़ी लहर बनकर उभर रही है. जनसुराज को लेकर युवाओं में उत्साह देखा जा रहा है. शिक्षा, रोजगार व पारदर्शी राजनीति की बातें अब ग्रामीण इलाकों में भी गूंज रही हैं. एनडीए प्रत्याशी अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए केंद्रीय योजनाओं और विकास कार्यों का हवाला दे रहे हैं. विपक्ष गठबंधन सरकार की विफलताओं को मुद्दा बना रहा है. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि शेरघाटी की चुनावी जंग अब दो गठबंधनों के बीच सीमित नहीं है, बल्कि त्रिकोणीय संघर्ष के संकेत स्पष्ट हैं. हाल के दिनों में एक निर्दलीय प्रत्याशी की रैली और जनसभा में उमड़ी भीड़ ने सभी समीकरणों को उलझा दिया है. माना जा रहा है कि यदि निर्दलीय उम्मीदवार ने वोट प्रतिशत में सेंध लगायी, तो दोनों प्रमुख गठबंधनों की गणित गड़बड़ा सकती है. शेरघाटी में टिकट वितरण से नाराज कई स्थानीय नेताओं ने अपने-अपने उम्मीदवार के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया है.

प्रत्याशियों की बढ़ी बेचैनी

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भीतरघात इस बार निर्णायक साबित हो सकता है. कई गांवों में अब तक यह तय नहीं है कि पूरा समुदाय किस ओर जायेगा. यही अनिश्चितता प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा रही है. फिलहाल, पूरा इलाका चुनावी रंग में रंग चुका है. चौक-चौराहों पर राजनीतिक बहस चरम पर है. दीवारों पर पोस्टर और बैनर लहराने लगे हैं और सोशल मीडिया से लेकर गांव की चौपाल तक एक ही चर्चा है कौन जीतेगा शेरघाटी. जैसे-जैसे मतदान नजदीक आ रहा है, प्रत्याशी अपने आखिरी दांव खेलने में जुटे हैं. अब देखना यह होगा कि जनता की यह गोलबंदी आखिर किसके पक्ष में निर्णायक लहर बनती है.

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