देवशयनी एकादशी के बाद शयन कक्ष में गए भगवान विष्णु आज बदलते हैं करवट
औरंगाबाद/कुटुंबा. करमा एकादशी व्रत आज बुधवार को रखा जायेगा. यह व्रत प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्लपक्ष एकादशी को विधि विधान से किया जाता है. मंगलवार की रात 12 बजकर 54 मिनट से बुधवार की रात एक बजकर 43 मिनट तक एकादशी तिथि है. इसी एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिर्विद डॉ हेरम्ब कुमार मिश्र ने बताया कि कर्मा व्रत को लेकर धर्मालंबियों में काफी आस्था रहती है. महिलाएं अपने भाइयों के सेहत, सुख समृद्धि व वैभव के लिए उपासना करती है. दूसरी तरफ ऐसी धारणा है कि करमा एकादशी का व्रत रखने से खुद सौभाग्य की प्राप्ति होती है. कष्टों का निवारण होता है, दैहिक दैविक व भौतिक तापों से छुटकारा मिलता है. परिवार में खुशी आती है व विघ्न बाधाएं दूर होती हैं. उन्होंने बताया कि बिहार, झारखंड व उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों में भी कर्म एकादशी का खास महत्व है. मध्य प्रदेश में इसी व्रत को डोलाग्यरस के नाम से लोग जानते हैं.झूर काशी व बेलौन्धर पूजने की रही है परंपरा
करमा एकादशी व्रत करने वाली महिलाओं एवं बालिकाओं द्वारा इस दिन आंगन में लकड़ी के पीढ़े पर रखकर झूर काशी व बेलौन्धर का पूजन करती हैं. धार्मिक और वैदिक मान्यताओं के अनुसार महिलाएं झूर के नीचे मिट्टी से भगवान शंकर, पार्वती के साथ गणेश जी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं. इससे उन्हें पारिवारिक सुख शांति और समृद्धि प्राप्त होती है. भगवान गणेश उन्हें बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद देते हैं. भगवान विष्णु, शंकर व पार्वती जी के साथ गणेश जी की आराधना करने से जीवन की समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं. शास्त्रों के अनुसार, देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु शयन में चले गये थे. इसके बाद भादो एकादशी को ही उन्होंने करवट बदली थी.भाई-बहन के रिश्ते का है अटूट संबंध
इस व्रत को करने से भाई बहन के रिश्ते में अटूट संबंध बनता है और भाई की रक्षा के लिए बहन भगवान विष्णु से प्रार्थना करती है. सनातन धर्म में करमा पारंपरिक और धार्मिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. छोटी से बड़ी लड़कियां और महिलाएं यह व्रत रखकर विधि विधान से पूजा करती हैं. पूजा के क्रम में भगवान शिव पर जलाभिषेक किया जाता है. उन्हें बेलपत्र और धतूरा अर्पित किया जाता है. पूजा के उपरांत व्रती कर्मा व धर्मा दो भाइयों पर आधारित पौराणिक कथा का श्रवण करती हैं. इस व्रत का पारण कल यानी गुरुवार को सूर्योदय के बाद किया जायेगा. लोक परंपरा के अनुसार बासी भात, दही और कर्मी का साग खाकर व्रती पारण कर व्रत का अनुष्ठान पूर्ण करती हैं. इस पर्व में लोक परम्पराओं के अंदर सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है. एकादशी अनुष्ठान के दौरान किसी भी व्यक्ति के लिए तामसी भोजन ग्रहण करना निषेध माना गया है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

