औरंगाबाद ग्रामीण. महिला बंध्याकरण व पुरुष नसबंदी को लेकर राज्य सरकार पूरे सूबे में व्यापक अभियान चला रही है. इस अभियान को सफल बनाने के लिए समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम भी स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से चलाये जाते हैं. इसके बावजूद यह योजना धरातल पर फिसड्डी साबित हो रही है. मॉडल अस्पताल के रूप में विकसित सदर अस्पताल की स्थिति इस मामले में बेहद दयनीय है, जबकि यहां इसके लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं. सूत्रों के अनुसार, सदर अस्पताल में पदस्थापित महिला स्त्रीरोग विशेषज्ञ इस अभियान में रुचि नहीं ले रही हैं. सरकार द्वारा बंध्याकरण या नसबंदी कराने वाली महिलाओं और पुरुषों को तीन-तीन हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है. यदि जनवरी से नवंबर तक के आंकड़ों पर गौर करें तो इस अवधि में 312 महिलाओं ने बंध्याकरण कराया है, जबकि मात्र दो पुरुषों ने नसबंदी करायी है. सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि महिलाओं का बंध्याकरण दो तरह से किया जाता है. प्रसव के सात दिन के अंदर किये जाने वाले बंध्याकरण को पोस्टपार्टम स्टरलाइजेशन कहा जाता है, जिसमें महिलाओं को तीन हजार रुपये दिये जाते हैं. प्रसव के सात दिन बाद किये जाने वाले बंध्याकरण को ट्यूबलाइजेशन कहा जाता है, जिसमें दो हजार रुपये प्रदान किये जाते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रेरित कर महिला या पुरुष को नसबंदी या बंध्याकरण के लिए अस्पताल लाया जाता है तो प्रेरक को 400 रुपये दिये जाते हैं. उपाधीक्षक ने कहा कि स्त्रीरोग विशेषज्ञों द्वारा उदासीनता बरते जाने के कारण अस्पताल अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रहा है.
बंध्याकरण के आंकड़े
जनवरी: टीटी 66, पीपीएस 10.
फरवरी: टीटी 65, पीपीएस 04.मार्च: टीटी 35, पीपीएस 02.
अप्रैल: टीटी 13, पीपीएस 05.मई: टीटी 04, पीपीएस 12.
जून: टीटी 04, पीपीएस 04.जुलाई: टीटी 02.
अगस्त: टीटी 13, पीपीएस 13.सितंबर: टीटी 11, पीपीएस 11.
अक्टूबर: टीटी 15, पीपीएस 07.नवंबर: टीटी 00, पीपीएस 06.
सात डॉक्टरों से स्पष्टीकरण
बंध्याकरण में रुचि नहीं लेने और टालमटोल की नीति अपनाने वाले सदर अस्पताल के सात डॉक्टरों से स्पष्टीकरण मांगा गया है. अस्पताल प्रबंधक प्रफुल्ल कांत निराला ने बताया कि 24 घंटे के भीतर स्पष्टीकरण नहीं देने पर संबंधित डॉक्टरों का वेतन रोकते हुए आगे की कार्रवाई की जायेगी.
हंगामे से डर रहे डॉक्टर
सूत्रों के अनुसार बंध्याकरण के दौरान किसी गड़बड़ी पर होने वाले हंगामे और विवाद के डर से डॉक्टर इस प्रक्रिया से दूरी बना रहे हैं. कुछ दिन पहले बंध्याकरण के लिए बेड पर ले जाने के दौरान एक मरीज की मौत हो गयी थी, जिसके बाद मामला तूल पकड़ लिया था. समझौते के बाद विवाद शांत हुआ था. इसके बाद से डॉक्टर बंध्याकरण करने को तैयार नहीं हैं. इसी कारण सदर अस्पताल में यह प्रक्रिया लगभग ठप हो गयी है. अस्पताल प्रबंधक ने कहा कि सरकारी आदेशों का पालन करना सभी स्वास्थ्यकर्मियों की जवाबदेही है.
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